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भारतके प्राचीन राजवंश
दक्षिण काशलके हैहय । पहले, कोकल्लदेवके वृत्तान्तमें लिखा गया है कि, कोकल्लके १८ पुत्र थे । उनमेंसे सबसे बड़ा पुत्र मुग्धतुङ्ग अपने पिता कोकल्लदेवका उत्तराधिकारी हुआ और दूसरे पुत्रोंको अलग अलग जागीरें मिलीं। उनमेंसे एकके वंशज कलिङ्गराजने दक्षिण-कोशल ( महाकोशल ) में अपना राज्य स्थापन किया । कलिङ्गराजके वंशज स्वतन्त्र राजा हुए।
१-कलिङ्गराज । यह कोकल्लदेवका वंशज था। रत्नपुरके एक लेख से ज्ञात होता है कि, दक्षिण-कोशल पर अधिकार करके तुम्माण नगरको इसने अपनी राजधानी बनाया। (दूसरे लेखोंसे इलाकेका नाम भी तुम्माण होना पाया जाता है ) इसके पुत्रका नाम कमलराज था ।
२-कमलराज । यह कलिङ्गराजका पुत्र और उत्तराधिकारी था ।
३-रत्नराज ( रत्नदेव प्रथम)। यह कमलराजका पुत्र था और उसके पीछे गद्दी पर बैठा । तुम्माणमें इसने रत्नेशका मंदिर बनवाया था, तथा अपने नामसे रत्नपुर नामका नगर भी बसाया था, वही रत्नपुर कुछ समय बाद उसके वंशजोंकी राजधानी बना । रत्नराजका विवाह कोमोमण्डलके राजा वजूककी पुत्री नोनल्लासे हुआ था । इसी नोनल्लासे पृथ्वीदेव ( पृथ्वीश ) ने जन्म ग्रहण किया।
४-पृथ्वीदेव (प्रथम)। यह रत्नराजका पुत्र और उत्तराधिकारी था। इसने रत्नपुरमें एक तालाव और तुम्माणमें पृथ्वीश्वरका मन्दिर बनवाया था। पृथ्वीदेवने
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