SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 556
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः (८७५०) क्षुधावती गुटिका (१) (स्वल्प) प्रत्येक पलमेषान्तु घण्टकर्णपुनर्णवा। ( भै. र. । अम्लपित्ता.) माणकं ग्रन्थिकं चेन्द्रकेशराजसुदर्शना ॥ दण्डोत्पला त्रिदन्ती जामात रक्तचन्दनम् । रसगन्धकमभ्राणि यमानी त्र्यूषणं तथा। | भृङ्गापामार्गकुलका मण्डूकश्च पलार्द्धकम् ॥ त्रिफला शतपुष्पा च चविका जीरकद्वयम् ।। | आईकस्वरसेनाथ गुडिकां सम्प्रकल्पयेत् । पुनर्णवा वचा दन्ती त्रिता घण्टकर्णकम् । | बदरास्थिसमां चैषां भक्षयित्वा पिबेदनु । दण्डोत्पला शारिवे द्वे चाक्षमात्राणि कारयेत् ॥ मण्डूरं द्विगुणं दवा पेषणीयं प्रयत्नतः।। आईस्वरस आलोच्य गुडिकां कारयेद् बुधः ॥ वटी क्षुधावती नाम सर्वाजीर्णविनाशिनी ॥ प्रत्यहं भक्षयेदेकां भक्तवारि पिबेदनु । अनिश्च कुरुते दीप्तं भस्मकश्च नियच्छति । वटी क्षुधावती नाम्ना चाम्लपित्तविनाशिनी ॥ अम्लपित्तश्च शूलश्च परिणामकृतश्च यत् ॥ अग्निश्च कुरुते दीप्तं तेजोवृद्धिं बलन्तथा। तत्सर्व शमयत्याशु भास्करस्तिमिरं यथा । प्लीहानं श्वासमानाहमामवातं विनाशयेत् ॥ | मधुरं वर्जयेदत्र विशेषात् क्षीरशर्करे ॥ परिणामभवं शुलं कासं पञ्चविधं तथा।। शुद्ध पारद, लोह भस्म, शुद्ध गन्धक, जगतस्तु हितार्थाय वाग्भटेन प्रकीर्तिता ॥ | अभ्रक भस्म, सोंठ, मिर्च, पीपल, हर, बहेड़ा, - शुद्ध पारद, गन्धक, अभ्रक भस्म, अजवाइन, आमला, वच, अजवायन, सोया, चव, जीरा और सेठ, मिर्च, पीपल, त्रिफला, सोया, चव्य, जीरा, | काला जीरा ५-५ तोले तथा घण्टकर्ण, पुनर्नवा कालाजीरा, पुनर्नवा, वच, दन्तीमूल, निसोत, (बिसखपरा), मानकन्द, पीपलामूल, इन्द्रजौ, भंगरा, घण्टकर्ण, दण्डोत्पलामूल, अनन्तमूल, श्यामलता; सुदर्शना, दण्डोत्पला, निसोत, दन्तीमूल, जामातृ प्रत्येक ११ तोला, मण्डूर भस्म २॥ तोले । इन्हें (हुलहुल ), लाल चन्दन, भंगरा, अपामार्ग अदरख के रससे मर्दन कर गुटिका बनावें । मात्रा । (चिरचिटा), परवल और मंडूकपर्णी; इनका बारीक ४ रत्ती। अनुपान-कांजी। यह वटी अम्लपित्त, चूर्ण २॥-२॥ तोले लेकर प्रथम पारे गन्धककी प्लीहा, श्वास, आनाह, आमवात, परिणामशूल तथा कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका कास को नष्ट करती है । यह तेज एवं बलको चूर्ण मिलाकर सबको अदरकके रसमें घोट कर बढ़ाती तथा अग्नि को प्रदीप्त करती है। | बेरकी गुठलीके समान गोलियां बनालें। (८७५१) क्षुधावती गुटिका (२) इनमें से १-१ गोली पानी अथवा कांजीके ( भै. र. ; धन्च. । अम्लपित्ता.) साथ सेवन करनेसे अजीर्ण, भस्मक रोग, अम्लपित्त रसायोगन्धकाभ्राणि त्र्यूषणं त्रिफला वचा। और परिणाम शूलका नाश होता तथा अग्नि दीप्त यमानी शतपुष्पा च चविका जीरकद्वयम् ॥ होती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy