SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 555
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि - - (८७४७) क्षारवटी सेर गोमूत्रमें पकावें और जब वह गाढ़ा हो जाय ( र. र. स. । उ. अ. १८) तो उसमें २ सेर गोदुग्ध मिलाकर पुनः पकावें । जब गाढ़ा हो जाय तो उतारकर ठंडा करके सुरअमृतं मेघभस्माथ शङ्ख चिश्चा सुभास्करम् । क्षित रखें। क्रमाद्विगुणितं कृत्वा तत्तुल्यं च कटुत्रयम् ॥ इसके सेवनसे पक्ति शूल नष्ट होता है। तुलसीभृङ्गराजोत्थमातुलुङ्गाकद्रवैः । (मात्रा-१ माशा।) भावितं बहुशश्चूर्ण रजो वा गुटिकापि वा ।। गुलामात्रं तु सेवेत गुल्मशूलान्विनाशयेत् ।। क्षीरसारो रसः (क्षीरसागररसः ) मन्दाग्निं ग्रहणीमर्शो रक्तगलममरोचकम् ॥ (र. रा. सु. । ज्वरा. , रोचका. ; र. का. धे.। एषा क्षारवटी नाना कृशदेहेषु युज्यते ॥ दाहा. ; र. चं. । ज्वरा.) प्र. सं. १४९४ "गगनादि वटी" देखिये। शुद्ध वछनाग १ भाग, अभ्रक भस्म २ भाग, (८७४९) क्षुद्धोधकरसः (१) शंख भस्म ४ भाग, इमलीका क्षार ८ भाग और ( र. रा. सु. । अजीर्णा. ; वै. र. । अग्निमांद्या.) ताम्र भस्म १६ भाग तथा त्रिकुटा ( सेठ, मिर्च, पीपलका समान भाग मिलित चूर्ण) १६ भाग | व्योषसिन्धुबलिभिरेकवित्रिलवैः स्मृतः । लेकर सबको एकत्र मिलाकर तुलसी, भंगरा, निम्बाम्बुमर्दितो गाढं नाम्ना क्षुद्रोधको रसः ।। बिजौरा नीबू और अदरक; इनके स्वरसकी पृथक् । त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ) १ भाग, पृथक् कई कई भावनाएं देकर या तो १-१ रत्ती : सेंधानमक २ भाग और शुद्ध गंधक ३ भाग लेकर की गोलियां बना लें या सुखाकर चूर्ण कर लें। । सबको एकत्र मिलाकर नीबूके रसमें खरल करके मुखाकर रक्खें । इसके सेवनसे गुल्म, शूल अग्निमांद्य, ग्रहणी, इसके सेवनसे क्षुधावृद्धि होती है। अर्श, रक्तगुल्म और अरुचिका नाश होता है। (मात्रा-२ रत्ती।) यह रस कृश पुरुषोंके लिये विशेष उपयोगी है। क्षुद्धोधकरसः (२) (८७४८) क्षीरमण्डूरम् ( र. रा. सु. । अजीर्णा.) ( भै. र. । शूला. ; यो. त. । न. ४४; च. द.; प्र. सं. २७८ अजीर्णकण्टकरस देखिये । __ वृ. मा. ; व. से. । शूला.) उसकी हिन्दी टीकामें भावना द्रव्योंमें कमलौहकिट्टपलान्यष्टौ गोमुत्रा ढके पचेत् । लका नाम छूट गया है अर्थात् मुलैठी की भावना क्षीरप्रस्थेन तत्सिद्धं पक्तिशूलहरं परम् ॥ के पश्चात् १ दिन कमलके रसमें भी घोटना ४० तोले लोहकिट (मंडूर)की भस्मको ४ चाहिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy