________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
५२४
तिल, अपामार्ग, केला, पलाश (ढाक), जौ और लोध; इनके क्षार समान भाग लेकर एकत्र मिलाकर खरल कर ले 1
भारत-भैषज्य रत्नाकरः
इसे भेड़के मूत्र के साथ सेवन करने से शर्करा रोग नष्ट होता है ।
(८७०९) क्षारयोगः (२)
( यो. र. । मूत्रकृच्छ्रा . )
अङ्कोल तिलकाष्ठानां क्षारः क्षौद्रेण संयुतः । दधिवार्यमुपानेन सूत्ररोधं नियच्छति ॥
मार्गरम्भातिला
अंको की लकड़ी का और तिलके वृक्षों का क्षार ( एकत्र बना हुवा या समान भाग मिश्रित ) शहद में मिलाकर चाटने से मूत्रावरोध नष्ट होता है।
अनुपान - दहीका पानी ।
( मात्रा - १ || माशा | )
(८७१०) क्षारयोगः (३) (क्षारामृतचूर्णम् )
(बृ. नि. र. । शूला. ; यो. चि. म. | अ. २; हा. सं. । स्था. ३ अ. ४ )
क्षारं मुष्ककर्किकार्जुन
जीवन्तीकमकार्थं च
रजनी कूष्माण्डवल्ली तथा । वासासूरणमेव तीव्र
दहने वा भस्मीकृतं तोयेन प्रतिसेव्य निःसृत
पयः पानं विधेयं यकृत् ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ क्षकारादि
शूलानाहविबन्धगुल्म
कफजान् रोगान् जयेत्कामलां विद्रध्यो हृदिशुलपाण्डु
ग्रहणीशोफार्शसां पीनसान् । मन्दाग्नौ ज्वरपीडने कृमिगुदभ्रंशे प्रमेहे तथा । शस्तं वृद्धिषु दाहशुलकसनोदूगारे वमौ प्ली िच ॥
पलाश (ढाक), मुष्कक (मोखावृक्ष), अर्जुन, धव, अपामार्ग, केला, तिल, जीवन्ती, धतूरा, हल्दी, पेठे (भूरे कुम्हड़े ) की बेल, बासा, और सूरण; इनका यथाविधि क्षार बनावें ।
इसे पानी के साथ सेवन करना और फिर यथेष्ट दूध पीना चाहिये ।
इसके सेवन से यकृतरोग, शूल, आनाह, विबन्ध गुल्म, कफज रोग, कामला, विद्रधि, हृदयशूल, पाण्डु, ग्रहणीरोग, शोथ, अर्श, पीनस, अग्निमांध, ज्वर, कृमि, गुदभ्रंश, प्रमेह, अण्डवृद्धि, दाह, शूल, कास, उद्गार अधिक आना, वमन और लीहावृद्धिका नाश होता है ।
(८७११) क्षारादियोगः (१) ( यो त । त. ४६ ) सक्षारत्र्यूषणं मद्यं प्रपिवदसगुल्मनुत् । पलाशक्षारतोयेन सिद्धं सर्पिः पिबेच सा ॥
जवाखार, सोंठ, मिर्च और पीपल; इनका चूर्ण समान भाग लेकर एकत्र मिलावें ।
यह चूर्ण मिलाकर मध पीनेसे रक्त गुल्म का नाश होता है।
For Private And Personal Use Only
अथवा पलाश के क्षारजलसे सिद्ध घृत पीने से भी रक्तगुल्म नष्ट होता है ।