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कपायप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
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(८७०४) क्षुद्रादिक्वाथः (५) क्वाथ सेवन करनेसे प्रबल मूर्छा रोग नष्ट हो (शा. सं. । खं. २ अ. २; यो. चि. म. । अ. ४) जाता है । क्षुद्राकुलित्थवासाभिर्नागरेण च साधितः ।। (८७०६) क्षुद्रारसयोगः क्वाथः पौष्करचूर्णाढयः श्वासकासौ निवार- (यो. त. । त. १८)
यत् ।। पचेत्क्षदां सपञ्चाङ्गां पुटपाकेन तद्रसः । कटेली, कुलथी, वासा (अडूसा) और सोंठ; पिप्पलीचूर्णसंयुक्तः कासश्वासक्षयापहः ।। इनके क्वाथमें पोखरमूलका चूर्ण मिलाकर सेवन ।
____ कटेलीके पंचांगको कूटकर (गोला बनाकर करने से श्वास कासका नाश होता है ।
उसे अरण्ड या बासेके पत्तोंमें लपेट कर उस पर १ (८७०५) क्षुद्रादिक्वाथः (६) अंगुल मोटा मिट्टीका लेप करके ) पुटपाक विधिसे (बृ. नि. र. । मूर्छा.)
पकावें और रस निकाल लें । क्षुद्रामृताग्रन्थिकनागराणां
इसमें ( १ माशा) पीपलका चूर्ण मिलाकर मूछों जयेदारुणकां कषायः। सेवन करनेसे कास, श्वास और क्षयका नाश होता है। कटेली, गिलोय, पीपलामूल और सोंठ; इनका (मात्रा-२ तोला ।)
इति क्षकारादिकषाय-प्रकरणम्
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अथ क्षकारादिचूर्णप्रकरणम् (८७०७) क्षारद्वयादिचूर्णम्
इसे धीके साथ मिलाकर पीनेसे समस्त प्रकारके (यो. र. । गुल्मा., उदरा.; वृ. नि. र. । गुल्मा.) । गुल्म और उदर रोगोंका नाश होता है। क्षारद्वयानलव्योषनीलीलवणपञ्चकम् ।
( मात्रा-२ माशे । ) चूर्णितं सर्पिपा पेयं सर्वगुल्मोदरापहम् ॥ __जवाखार, सञ्जीखार, चीतामूल, सोंठ, काली
(८७०८) क्षारयोगः (१) मिर्च, पीपल, नीलकी जड़ और पांचों नमक (सेंधा. (सुश्रुत सं. । चि. अ. ७ अश्मर्य.) संचल, विड लवण, सामुद्र लवण और उद्भिदलवण) तिलापामार्गकदलीपलाशयववल्कजः । समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
क्षारः पेयोऽविमूत्रेण शर्करानाशनः परः ॥
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