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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः ५२० निधापयेत्ततो मासादुद्धृतं गालितं पचेत् । हरीतकीनां क्वाथेन दध्ना चाम्लेन संयुतम् ॥ उदरं गरमहीलामानाहं गुल्मविद्रधिम् । इत्येतत्कुष्ठमुन्मादमपस्मारं च पानतः ॥ १ सेरे हर के बारीक चूर्णको ४ सेर शहद में मिलाकर गरम करके मथनीसे मर्थे और मृत्पात्र में भरकर उसका मुख बन्द करके अनाजके ढेरमें दबा दें। १ मास पश्चात् उसे निकालकर कपड़े से छान लें और उसमें हर्र का काथ, तथा खट्टी दही ( प्रत्येक उसके बराबर) मिलाकर पकावें । ( जब कुछ गाढ़ा हो जाय तो ठंडा करके सुरक्षित रक्खें । इसके सेवन से उदररोग, गरविष, अष्ठीला, आनाह, गुल्म, विद्रधि, कुष्ठ, उन्माद और अपस्मारका नाश होता है । (८६९३) हिक्काहरयोगाः (ग. नि. । हिक्काश्वासा. ११) श्वासावरोधिनी हिक्का शमं यात्यति वेगतः । चुकैर्वा जले पीते धृत्वा श्वासं निवर्तते ॥ मधुना कटुकीचूर्ण लीढं हिक्कानिवारणम् । शिलाघूमस्य पानं वा नलिका यन्त्रयोगतः ॥ (१) श्वासको रोककर चुल्लुसे जल पीने दम बन्द कर देने वाली हिचकी भी बन्द हो जाती है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ हकारादि (८६९४) हिङ्गुशोधनम् ( यो. र. ) पद्मपत्ररसे याममातपे भावितं विदुः । राम शुद्धिमाप्नोति रसयोगेषु योजयेत् ॥ कमल के पत्तोंके रसमें १ पहर धूप में घोटने से हींग शुद्ध हो जाता है । (८६९५) हिङ्ग्वादि यवागू ( यो. र. वृ. नि. र. । हिक्का ; ) हिङ्गुसौवर्चलाजाजीविड पौष्करचित्रकैः । सटी कर्कटभृङ्गी च यवागूः श्वासहिकिनाम् || होंग, संचल, जीरा, बिडनमक, पोखरमूल, चीतामूल, कचूर और काकड़ासिंगी; इनसे बनाई हुई यवागू श्वास और हिक्का रोगमें हितकारक है। ( हींग, संचल और बिड नमक यवागू तैयार होने पर डालने चाहियें तथा शेष चीजोंका ङ्ग पानीय विधि क्वाथ बनाकर उसमें यवागू पकानी चाहिये । ) (८६९६) हिङ्ग्वादियोग ः (१) ( व. से. 1 मुखरोगा. ; भा. प्र. | म. खं. २ ) कृमिदन्तापहं कोष्णं हिदन्तान्तरे स्थितम् || first ज़रा गरम करके दांतके नीचे ( या उसके गढ़े में ) रखनेसे दन्तकृमि नष्ट हो जाते हैं। (८६९७) हिङ्ग्ग्वादियोगः (२) (२) कुटकी चूर्णको शहद में मिलाकर चाटने से अथवा (३) मनसिल को चिलममें रखकर हुक्के ( ग. नि. । चूर्णा. ३ ; वा. भ. । चि. अ. १४ गुल्मा. ) हिङ्गुत्रिगुणं सैन्धवमस्मात्रिगुणं च तैलमेरण्डम् । से धूम्रपान करनेसे भी हिचकी नष्ट हो जाती है । । तत्रिगुण रसोनरसं गुल्मोदावर्तशूलघ्नम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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