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मिश्रप्रकरणम् ]
पश्चमो भागः
५२१
हींग १ भाग, सेंधानमक ३ भाग, एरण्ड | वत्ती बनावें। इसे घी लगाकर गुदामें रखमेसे तैल ९ भाग और लहसनका रस २७ भाग लेकर । उदावर्त नष्ट हो जाता है। सबको एकत्र मिलाकर सेवन करनेसे गुल्म, उदावर्त और शूलका नाश होता है।
(८६९९) हीवेरादियोगः (मात्रा-६ माशे)
(वं. से ; यो. र. । दाहरोगा.) (८६९८) हिावादि वतिः ( यो. र. । उदावर्ता. ; भै. र. ; वृ. मा. ; वृ.
हीबेरपाकोशीरचन्दनक्षोदवारिणा । नि. र. ; व. से. ; र. र. । उदावर्ता.)
| सम्पूर्णामवगाहेत द्रोणी दाहार्दितो नरः ॥ हिमाक्षिकसिन्धूत्थैः पक्त्वा वति सुखा. सुगन्धवाला, पाक, खस और लाल चन्दन
वर्तिताम् । समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इस चूर्णको (८ घृताभ्यक्तां गुदे दनादुदावर्तविनाशिनीम् ॥ | गुने ) पानी में मिलाकर (२४ घंटे रखने के बाद)
हींग, शहद और सेंधानमक समान भाग उस पानीमें डुबकी लगानेसे दाह शान्त हो लेकर सबको एकत्र पीसकर पकाकर गाढ़ा करके । जाती है ।
इति हकारादिमिश्रप्रकरणम्
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