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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [हकारादि पिष्ट्वा गुआ चतुर्मानं दद्याद्गव्याज्यसंयुतम् । कृत्वा गोलं क्षिपेन्मूषासम्पुटे मुद्रयेत्ततः । एकानत्रिंशदुन्मानमरिचैः सह दीयते ॥ | पचेद् भूधरयन्त्रेण वासरत्रितयं बुधः ॥ राजते मृण्मये पात्रे काश्चने वाऽवलेहयेत्। तत उद्धृत्य तत्सर्व दद्याद्गन्धं च तत्समम् । लोकनाथसमं पथ्यं कुर्याञ्च स्वस्थमानसः ।। मर्दयेदाकरसैश्चित्रकस्वरसेन च ।।। कासे श्वासे क्षये वाते कफे ग्रहणिकागदे । । स्थूलपीतवराटांश्च पुरयेत्तेन युक्तितः । अतीसारे प्रयोक्तव्या पोट्टली हेमगर्भिका ॥ एतस्मादौषधात्कुर्यादष्टमांशेन टङ्कणम् ॥ शुद्ध पारद ४ भाग और शुद्ध सोनेके वर्क ४ टङ्कणार्धं विषं दत्त्वा पिष्ट्वा सेहुण्डदुग्धकैः । भाग लेकर दोनोंको एकत्र खरल करें, जब स्वर्ण मुद्रयेत्तेन कल्केन वराटानां मुखानि च ॥ पारदमें मिल जाय तो उसमें १२ भाग शुद्ध गंधक भाण्डे चूर्णप्रलिप्ते च धृत्वा मुद्रां प्रदापयेत् । मिलाकर कजली बनावें और फिर उसमें १६ भाग | गते इस्तोन्मिते धृत्वा पुटेदगजपुटेन च ।। मोतीका चूर्ण, २४ भाग शंखका चूर्ण और १ स्वाङ्गशीतं रसं ज्ञात्वा प्रदघाल्लोकनाथवत् । भाग सुहागा मिलाकर पक्के नीबूके रसमें खरल करें पथ्यं मृगातवज्ज्ञेयं त्रिदिनं लवणं त्यजेत् ।। और फिर सबका एक गोला बनाकर उसे मूषाके सम्पुट में बन्द करके ( उस पर ३-४ कपरमिट्टी यदा छर्दिर्भवेत्तस्य दघाच्छिन्नाशृतं तदा । करके ) १ हाथ चौड़े, १ हाथ लम्बे और इतने मधुयुक्तं तथा श्लेष्मकोपे दद्याद्गुडाईकम् ॥ विरेके भजिता भङ्गा प्रदेया दधिसंयुता। ही गहरे गढ़े में रखकर बन कण्डों में फूक दें। तदनन्तर उसके स्वांगशीतल होने पर औषधको जयेत्कासं क्षयं श्वास ग्रहणीमरुचिं तथा ।। निकालकर पीस लें। | अग्निं च कुरुते दीप्तं कफवातं नियच्छति । इसमें से ४ रत्ती रस सोनेके या चांदी अथवा हेमगर्भः परो ज्ञेयो रसः पोलिकाभिधः ॥ मिट्टीके पात्रमें रखकर उसमें २९ काली मिचौंका ४ भाग शुद्ध पारद और १ भाग सोने के चूर्ण और थोड़ा गोघृत मिलाकर चाटना चाहिये । वर्क एकत्र मिलाकर खरल करें और जब स्वर्ण __इस पर पथ्यादिकी व्यवस्था 'लोकनाथ रस' पारदमें मिल जाय तो उसमें १० भाग शुद्ध गंधक के समान करनी चाहिये ।। मिलाकर कज्जली बनावें और उसे कचनारकी छालके - इसके सेवनसे कास, श्वास, क्षय, वायु, कफ, रसमें खरल करके सबका एक गोला बनावें तथा संग्रहणी और अतिसारका नाश होता है । उसे (सुखाकर) मूषाके सम्पुट में बन्द करके (उस (८६६२) हेमगर्भपोटलीरसः (७) पर ३-४ कपर मिट्टी करके ) ३ दिन भूधरयन्त्र में (शा. ध. । खं. २ अ. १२; र. प्र. सु.।। पकावें । तदनन्तर उसके स्वांग शीतल होने पर अ. ८; वृ. नि. र.। क्षय.; र. का. धे. । क्षय.) औषधको निकालकर उसमें उसके बराबर शुद्ध सूतात्पादप्रमाणेन हेम्नः पिष्टिं प्रकल्पयेत् । गंधक का चूर्ण मिलाकर अदरक के रस तथा चीता. तयोः स्यादद्विगुणो गन्धो मर्दपेत्काञ्चनारकैः।। मूलके स्वरस के साथ १-१ दिन खरल करके For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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