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रसप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
चन्द्रोदयमुखान् तालशिलामल्लादिचिह्नितान्। । भर दें तथा उनके मुखको आकके दूधमें पिसे हुवे ईपद्गोलादिजाम्भोभिस्तन्तुलैमर्दयेदृढम् ॥ सुहागे से बन्द करके शखके बारीक चूर्णके भीतर कुर्यात्पोटलिकां स्वेष्टां तन्मुद्रामुद्रितामपि। शरावसम्पुटमें बन्द करके गजपुटमें फूंक दें । तदस्वसज्ञाचिह्नितां चापिच्छायाशुष्कां करोत्वपि ॥ नन्तर पुटके स्वांगशीतल होने पर उसमें से कौड़ियों कोषी कौशेय वस्त्रोत्थामर्द्धभागे प्रपूरयेत । को निकालकर पीस लें। तत्पश्चात् इस चूर्णकी गन्धकेनाऽन्तरस्थां तां पोटलीं गन्धकाऽऽवृताम्। एक वा अधिक शिखराकार वटी बनाकर कपड़े में कुनीताऽथ सोव्येत्ता कोषों कौशेयतन्तुभिः। बांधकर मजबूत पोटली बनावें और एक प्याले में पुनश्चापर कोपीस्थां गन्धकाऽऽवृतरूपिणीम् ॥ गंधकका चूर्ण रखकर उस पर वह पोटली रक्खें तथा कोषीं कृत्वा च तदवक्तं दृढं सीव्येचिकित्सकः। पोटलीको गंधकके चूर्णसे ढक दें एवं उस पर दूसरा ऊर्ध्वाधो गन्धर्फ दत्त्वा इण्डयां धृत्वा पचे- शराव ढककर १ पहर मन्दाग्नि पर पकायें । जब
दिमाम || कपड़ा जल जाय तो शरावको आगसे नीचे उतार परीक्षेताऽथ घटयन्ते चोत्थाप्याऽयः शलाकया। लें और स्वांगशीतल होने पर गुटिकाको निकालकर वस्त्रे दग्धे तु निस्सायं पोटली स्वाङ्गशीत- ऊपर लगी हुई गंधकको घिसकर छुड़ा दें ।
लाम् ॥ इसके सेवनसे क्षय, संग्रहणी, ज्वर, खांसी घटा चेनां तु कुर्वीत पोटली मजुदर्शनाम् ॥ आदिका नाश होता है। कूपीसङ्ग्रहणे दुःखं दुःखं भारोवहे परम् । दुःखं वा दालिका भङ्गादौषधक्षयजं महत् ॥ (८६६१) हेमगर्भपोटलोरसः (६) विधिनाऽनेन भैषज्य प्रकारो भाति शोभनः ।।
( शा. सं.। खं. २ अ. १२ ; र. प्र. सु. । इत्याकलय्य निर्माति पोटलीं श्यामसुन्दरः ।।
" श्यामसुन्दरः ॥ अ. ८ : र. रा. सु.। कासा. ; र. चं. । __ स्वर्ण सिन्दूर १ भाग, स्वर्णसिन्दूर बनाते
राजयक्ष्मा. ; वृ. नि. र. ; यो. र.। कासा.) समय निकली हुई स्वर्ण भस्म १ भाग, मोती भस्म १ भाग और शुद्धगन्धकचूर्ण ३ भाग* लेकर तीनों
रसस्य भागाश्चत्वारस्तावन्तः कनकस्य च । को एकत्र खरल करें और फिर उसमें १-१ भाग
तयोश्च पिष्टिकां कृत्वा गन्धो द्वादशभागिकः ।। ताम्र भस्म, वङ्ग भस्म, और नाग भस्म मिलाकर
कुर्यात्कजलिकां तेषां मुक्ता भागाश्च षोडश । आकके दूध में घोटें और सुखाकर पीली कौड़ियों में चतुर्विंशच शङ्कस्य भागैकं टङ्कणस्य च ।। * श्रीयुत् रसायनाचार्य श्यामसुन्दराचार्य वैश्य
एकत्र मर्दयेत्सर्वं पक्वनिम्बूकले रसैः। ( रसायनसार के कर्ता ) ने स्वयं इन दलोकांकी | कृत्वा तपा तता गाल मूषासम्पुटक न्यसेत् ॥ हिंदी टीकामें स्वर्ण और मोती चौथाई भाग तथा मुद्रां दत्त्वा ततो हस्तमात्रे गर्ने च गोमयैः । गंधक १॥ भाग लिखा है।
पुटेद् गजपुटेनव स्वाङ्गशीतं समुदरेत् ॥
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