________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५०४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[हकारादि तन्मध्ये पोटली न्यस्य निर्वातभवनान्तरे। (८६५९) हेमगर्भपोटलीरसः (४) वितस्तिमित गर्ने तस्मिन्संस्थाप्य मुद्रयेत् ॥ (र. र. स. । उ. अ. १४ ; वृ. नि. र. । क्षय.) अङ्गलीसत्तिकाभिश्च ज्वालयेदिन्धनानि च। द्विनिष्क भस्म सुतस्य निष्ककं स्वर्णभस्मकम् । यामेन ।सद्धतां याति हेमगर्भाख्यपोटली ॥ शुद्धगन्धकनिष्कौ द्वो चूर्णित्वा चित्रकद्रवैः ॥ अनुपानानुसारेण सर्वरोगेषु योजयेत् ॥ बियामान्ते विशोष्याथ तेन पूर्या वराटिकाः ।
शुद्ध.पारद ३ भाग, ताम्र भस्म ३ भाग, शुद्ध वराटान्मृण्मये भाण्डे रुध्वा गजपुटे पचेत ।। गंधक १ भाग और स्वर्ण भस्म आधा भाग लेकर स्वाशीतं विचूाथ पोटली हेमगर्भिताम् । सबको खरलमें डालकर सात दिन तक घोटें और
मृगावचतुर्मुझं भक्षितं राजयक्ष्मनुत् ।।
पारद भस्म २ भाग, स्वर्ण भस्म १ भाग फिर उसे सात दिन संभालु या धतूरे के रसमें खरल
और शुद्ध गंधकका चूर्ण २ भाग लेकर तीनोंको करके गोली बनावें और फिर एक कपड़ेपर थोड़ा । एकत्र खरल करके चीतेके क्वाथमें २ पहर घोट कर शुद्ध गंधकका चूर्ण बिछा कर उस पर वह गोली सुखा लें और उसे कौड़ियों में भरकर (उनके मुखको रखकर मजबूत पोटली बनावें तथा इस पोटलीको दूधमें पिसे हुवे सुहागेसे बन्द करके ) उन्हें शरावपुनः एक अन्य वक्ष पर गंधक विछाकर उसमें | सम्पुट में बन्द करके गजपुटमें पकावें । तदनन्तर लपेटें और फिर उसपर भी एक कपड़ा इसी प्रकार
स्वांग शीतल होने पर कौड़ियों सहित औषधको
पीस लें। (गंधकके साथ ) लपेट दें। अब एक मजबूत
इसके सेवन से क्षयका नाश होता है | मिट्टीके प्याले में ऊपर नीचे गंधकका चूर्ण रखकर ।
मात्रा-४ रत्ती। यह पोटली रखें और उस पर दूसरा प्याला ढक
अनुपानादि-मृगाङ्कके समान् । कर सन्धिको बन्द करदें तथा इस सम्पुट पर ३-४ (८६६०) हेमग पोटलीरसः (५) कपड़मिट्टी कर के सुखा लें । तत्पश्चात् निर्वात
(रसायनसार) स्थानमें १ बालिश्त गहरा गढ़ा खोदकर उसमें यह स्वर्णसिन्दूरक तजं स्वर्णभस्म सुमौक्तिकम् । सम्पुट रखकर उस पर १ अंगुल मिट्टी चढ़ा दें
स्वर्णतुल्यं समं गन्ध त्रयाणामपि मर्दयेत् ।। और ऊपर १ पहर तक अग्नि जलावें । तदनन्तर
ताम्रबाभुजङ्गानां भस्मान्यत्रानुपातयेत् ।
सिन्दरसममानानि मर्दयेदर्कदुग्धतः ।। स्वांग शीतल होने पर गोलीको निकालकर
शुष्कां कजलिकामेतां वराटीष्वेव पूरयेत् । सुरक्षित रखें।
मन्दारपयसा पिष्टटङ्कणेन च मुद्रयेत् ॥ यह रस अनुपान भेदसे समस्त रोगों को नष्ट
शाचूर्णे धृता एता: पुटित्वा गजससके । करता है।
पोटली पूर्ववत् कृत्वा दिष्टरोगेषु याजयेत् ।।
For Private And Personal Use Only