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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[हकारादि
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भीगे हुवे कपड़ेकी गद्दी रक्खें और उसे बार बार हिंगुलको नीबूके रसमें घोटकर सुखाले। ठंडा करते रहें। इस विधिसे पारद ऊपरकी| तदनन्तर जितने तोले हिंगुल हो उतने ही तोले हांडीमें आ लेगेगा।)
स्वच्छ वस्त्रके टुकड़े लेकर उनमें से एक टुकड़ेको इस प्रकार निकाला हुवा पारद शुद्ध होता है। बिछाकर उस पर हिंगुलके चूर्णको फैला दें और (८६३०) हिङ्गुलात्पारदनिस्सारण । | फिर कपड़ेको इस प्रकार लपेट कर गेंदसी बनावें विधिः (२)
कि हिंगुल इकट्ठा न हो जाय । तत्पश्चात् उस (रसायन सार)
गेंदपर बाकी रहा हुवा कपड़ा लपेटकर उस पर यावत्ममाणन्दरदं गृहीत
सुतली या डोरा लपेट दें। अब भूमि पर एक सावत्पमाणश्च पटम्प्रगृह्य । अच्छा लम्बा चौड़ा कागजका तख्ता बिछाकर उस प्रसार्य चूर्ण खलु हिङ्गुलस्य पर ४ अंगुल ऊंची दो ईटें रखकर उन पर लोहे
निधौंतवस्त्रेऽम्ल सुभावितस्य ।। का तवा रख दें और उस तवे पर उपरोक्त गोला वस्त्रन्तथाऽऽकुश्चयता बुधेन रख कर उसके चारों ओर मिट्टीके ठीकरे लगा दें
यथा न सङ्घातमुपैति चूर्णम् । कि जिससे गोला इधर उधर न खिसक सके। कार्यन्तयोर्वर्तुलगोलकञ्च
इसके पश्चात् दियासलाईसे उस गोलेमें आग लड्डूकवद्धिगुलवस्त्रयोस्तत् ॥ | लगादें (या उस पर दो चार अंगारे रख दें अथवा बवा पुनस्सूत्रमुखेन सम्यम् मिट्टीका तेल छिड़ककर दियासलाई जलाकर लगा
लोहस्य तापे निदधीत धीमान् । दें और गोले में अच्छी तरह आग लग जाने पर तथा यथानति चलत्ववृत्ति
लपट बुझा दें।) जब गोला अच्छी तरह सुलग ___ गतिङ्कपालैः कतिभिः सुरुध्य ॥ जाए और आग बुझनेका भय न रहे तो तवेके वेदप्रमाणाङ्गुलमुच्छिते द्वे
ऊपर एक नाद ढकदें । इस नांदको ठीकरियोंके ____ दृढेष्टके भूमितले निदध्यात् । ऊपर इस प्रकार रखना चाहिये कि नांद भूमिसे लम्बेन पत्रेण समास्तृते च
आध अंगुल ऊंची रहे कि जिससे वायु आ जा तयोर्कजीर्ष ह्युपवेशयेत ॥ _ सके । (नांद भूमिसे अधिक ऊंची रहेगी तो पारद प्रज्वाल्य दीपस्य शलाकया तद् बाहर निकल जायगा ।)
दरोत्थ नान्या पिदधीत धीमान् । (चार छः पहर पश्चात् ) जब नांदको पेंदी यन्त्रे सुशीते स्वयमेव नान्दी- स्वांग शीतल हो जाय तो धीरेसे उसे सीधा करलें
मुत्याप्य गृह्णातु विशुद्धसूतम् ॥ और उसके भीतर लगे हुवे पारको छुड़ा लें। नान्द्यावक्षसि मनं लग्नन्तस्मिन्नृजीपात्रेऽपि। ( यदि बीच ही में आग बुझ जानेसे गोला गोलकमध्ये नग्नं कञ्चुकसप्तकविनाभावे ॥ कञ्चा' रह गया हो तो उस पर थोड़ा कपड़ा लपेट
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