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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] पञ्चमो भागः ४९१ कर पुनः उक्त विधिसे पारद निकालें । जले हुवे पानी बदला जा चुके तो आग देनी बन्द करदें कपड़ेकी राखको खरलमें घोटकर फूंकसे उड़ा और हांडीके स्वांगशीतल होने पर उसे आहिस्ता देनेसे या बार बार पानी डालकर नितारनेसे उसमें से खोलकर ऊपरके प्यालेमें लगे हुवे पारदको मिला हुवा शेष पारदभी निकल आयेगा। इस छुड़ा लें । विधिसे ८० तोले हिंगुलसे ७५ तोले तक पारद (८६३२) हिङ्गलेश्वररसः (१) निकल आता है।) ( र. रा. सु. । ग्रहण्य.) (८६३१) हिङ्गालात्पारद निस्सारण- | तोलकैकं समादाय शुद्धं हिङ्गलगन्धयोः। विधिः (३) माषद्वयं जीर्णतानं सर्वमेकत्र मर्दयेत् ॥ शिलायां शिलया याम शाल्मलीसत्वभावितम्। ( रसे. सा. सं.) गुनाद्वयं वटीं कुर्यात्प्रयत्नेन भिषग्वरः ॥ दरदं तण्डुलस्थूलं कृत्वा मृत्पात्रके त्रिदिनम्। सम्मर्च मधुना खादेदतिसारनिपीडितः । भाव्यं जम्बीररसैश्चाङ्गा वा रसैबहुधा ॥ ग्रहणीरोगसंयुक्तः सहग्रहणीयुतः ॥ ततश्च जम्बीरवारिणा चाङ्गेारसेनपरिप्लुतम्। प्रवाहिकां क्लान्ततनुरनिमान्दादिकं जयेत् । कृत्वा स्थालीमध्ये निधाय तदुपरि कठिनी घृष्टम्।। धान्यकं जीरकं काथमनुपानं प्रयोजयेत् । चारुशरावं तत्र त्रिंशद्वारं जलं देयम् । रिङ्गलेश्वरनामोयं रसः सर्वगदापहः ।। उष्णे हेयं तथैव तदूर्ध्वपातनेन निर्मलः शिवजः। शुद्ध हिंगुल और शुद्ध गंधक १-१ तोला हिंगुलके चावलोंके समान बारीक टुकड़े करके मिट्टीके | तथा ताम्रभस्म २ माशे लेकर सबको पत्थरके बरतन में रख कर उसमें जम्बीरी नीबूका या चांगेरीका खरल में १ पहर सेंभलकी जड़के रस में खरल रस इतना डालें कि हिंगुल उसमें डूब जाय । उसे करके २-२ रत्तीकी गोलियां बना लें। ३ दिन तक इसी प्रकार भिगोए रहें । ज्यों ज्यों इनमेंसे एक एक गोली शहदमें मिलाकर रस कम होता जाए और डालते रहें । तदनन्तर सेवन करनेसे अतिसार, ग्रहणी, प्रवाहिका और उसमें और नया रस डालकर उस बरतन पर एक अग्निमांद्यादिका नाश होता है। ऐसा शराव सीधा ढक दें कि जिसकी तली पर खिड़िया मिट्टीका लेप किया हुवा हो। तत्पश्चात् अनुपान-धनिये और जीरेका क्वाथ । सन्धिको अच्छी तरह बन्द कर दें । ( हाण्डी पर (८६३३) हिङ्गुलेश्वररसः (२) पहिले से ही ३-४ कपड़मिट्टी करलेनी चाहियें।) ' (वृद्धज्वराङ्कुशरसः) अब इस हाण्डीको अग्नि पर चढ़ा दें और ऊपरके । (र. र. स. । उ. अ. १२) शरावमें पानी भरदें । जब पानी गरम हो जाए रसहिङ्गलजेपालद्धया दन्त्यम्बुमर्दिनः । तो उसे बदल दें । इसी प्रकार जब ३० बार दिनार्धन ज्वरं हन्याद् गुञ्जकं सितया सह ॥ . For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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