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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] पञ्चमो भागः ४७९. - - - अथ हकारादिरसप्रकरणम् (८५९६) हरगौरीरसः : श्लक्ष्णचूर्ण ततः कृत्वा सर्व क्षीरेण गोलयेत् । (र. का. धे. । वातव्या. ; र. सं. क. । उ. अ. ४) निष्कद्वयं वटी कुर्याघृतमध्ये विपाचयेत् ।। पारदं तत्तृतीयांशं गन्धं दत्त्वा तु मईयेत। स्वाङ्गशीतलतां खादेत्प्रत्यहं पाचितां धतः । दशांशनवसारेण दुतं चोन्मत्तवारिणा॥ महिषीक्षीरककमनुपानश्च सर्वदा ॥ खल्वे सम्म तत्सर्व काचकुप्यां निवेशयेत् । हरगौरीसृष्टिरसः सर्वमेहकुलान्तकः । गुरुक्तसम्प्रदायेन वालुकायन्त्रमध्यगम् ॥ दुग्धोदनं घृतं पथ्यं शाकं चिश्चाफलम्भवेत् ॥ पचेषोडशयामांश्च मन्दमध्यहठानिना। शुद्र पारद ४ भाग, ताम्रभस्म २ भाग और पक्यः सुशीतलो प्रायो हरगौरीरसो भवेत् ॥ शुद्ध गंधक ६ भाग लेकर तीनोंको एकत्र खरल शुद्ध पारद ३ भाग, शुद्ध गंधक १ भाग और करके कजली बनावें और उसे १ दिन मस्तु (दही नवसादरका चूर्ण दशवां भाग लेकर तीनोंको एकत्र के तोड़) में खरल करें । तदनन्तर सबका एक मिलाकर कजली बनावें और उसे धतूरे के रस में गोला बनाकर उसे ( सुखाकर ) चार तह किये खरल करके सुखा कर कपर मिट्टी की हुई आतशी हुवे कपड़ेमें बांधकर, बालुकायन्त्रमें रखकर मन्दाग्नि शीशीमें भरें एवं उसे बालुका यन्त्रमें रखकर क्रमशः पर इतना पकावे कि बालू खूब गरम हो जाए। मृदु, मध्यम और तीब्राग्नि पर १६ पहर पकावें। जब बालू इतनी गर्म हो जाए कि हाथसे न छई तदनन्तर उसके स्वांग शीतल होने पर शोशीसे जा सके तो अग्नि देनी बन्द करदें और यन्त्रके स्वांग रसका निकाल लें। शीतल होने पर रसको निकालकर पीस लें तथा उसे आमले के स्वरस और गोखरुके रसकी सात ( यह रस वातव्याधिको नष्ट करता है।) सात भावना देकर दूधमें खरल करके २-२ निष्क (८५९७) हरगौरीसृष्टिरसः की गोलियां बना लें। (र. र. । प्रमेहा.) ( व्यवहारिक मात्रा-१ रत्ती ।) शुद्धमृतं चतुर्भागं मूताई मृतताम्रकम् । इनमें से १-१ गोली प्रति दिन धीमें पकाकर गन्धकञ्च द्वयोस्तुल्यं मस्तुना मर्दयेद्दिनम् ॥ । ठंडा करके १। तोला भैसके दूधके साथ खानेसे गोलकं वन्धयेद्वस्त्रे वालुकायन्त्रगं पचेत् ।। मन्दाग्निना पचेतावद्यावत्तप्ताश्च वालुकाः ।। | समस्त प्रकारके प्रमेह नष्ट होते है । स्पष्टुं न शक्यते तापमयोद्धृत्यो विचूर्णयेत् ।। पथ्य-दूध, भात, घी, और इमली के (पक्के) धात्रीफळरसैर्भाव्यं सप्तधा गोक्षुरस्य च ॥ । फलोंका शाक। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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