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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८० www. kobatirth.org (८५९८) हरनेत्रो रसः ( र. र. 1 राजयक्ष्मा. ) भारत त-भैषज्य - रत्नाकरः टङ्कणं शुद्धगन्धं तु सुवर्ण माक्षिकं पृथक् । एकं द्वित्रिचतुः पञ्चक्रमाच शुद्ध सूतकम् ॥ चाङ्गेय्यश्च द्रवैर्म दिनेकं गोलकीकृतम्। गन्धकं ताम्रपथ गोलकांशं प्रमर्दयेत् ॥ गोलकं लेपयेत्तेन ततो वस्त्रेण वेष्टयेत् । मृगाङ्कं पाचयेत्स्याल्यां वालुकाभिश्च पूरिते ॥ उद्धृत्य चूर्णयेच्छ्रलक्ष्णं हरनेत्री रसोत्तमः । मृगाङ्कवत् क्षयं हन्ति तद्वन्मात्रानुसारतः ।। सुहागेकी खील १ भाग, शुद्र गंधक २ भाग, स्वर्णभस्म ३ भाग, स्वर्णमाक्षिक भस्म ४ भाग, और शुद्ध पारद ५ भाग लेकर सबको एकत्र खरल करके कजली बनावें और उसे १ दिन चांगेरीके समें खरल करके सबका एक गोला बना लें | तदनन्तर गोलेके बराबर शुद्ध गंधकको मजीठके रसमें खरल करके इस गोले पर लेप कर दें। और फिर उसे कपड़े में लपेटकर मृगाङ्क रसके समान बालकायन्त्र में पकावें । यह रस क्षयमें मृगाङ्कके समान गुणकारी है। इसकी मात्रादि भी मृगाङ्गके समान ही है । (८५९९) हररुद्ररसः ( वृ. नि. र. । क्षया. ) तीक्ष्णं शुल्वं नागतारं स्वर्ण च मारितं पृथक् । एकद्वित्रिचतुपञ्चक्रमात्षट् शुद्धमृतकम् ॥ चाङ्गेर्याश्च द्रवैर्म दिनैकं कृतगोलकम् । मृगाङ्कवत्पचेत् स्थाल्यां वालुकाभिः प्रपूरितम् उधृत्य चूर्णयेत् लक्ष्णं हररुद्रो रसोत्तमः । मृगाङ्कवत्क्षयं हन्ति तद्वन्मात्रानुपानकम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ हकारादि तीक्ष्ण लोहभस्म १ भाग, ताम्र भस्म २ भाग, सोसा भस्म ३ भाग, चांदीभम्म ४ भाग, स्वर्णभस्म ५ भाग और शुद्ध पारद ६ भाग लेकर सबको एकत्र खरल करके एक दिन चांगेरीके उसमें घोटकर सबक! एक गोला बनावें और उसे मृगांक के समान बालुकायन्त्र में पकावें । यह रस में 'मृगाङ्क रस ' के समान गुणकारी है एवं इसकी मात्रा तथा अनुपानादि भी मृगाङ्कके समान ही हैं । (८६००) हरशशाङ्करसः (१) ( भै. र. | वाजीकरणा . ) शाल्मल्यास्त्वचमादाय श्लक्ष्णचूर्णानि कारयेत् । शुद्धगन्धकचूर्णानि तद्रसेनैव भावयेत् ॥ मासमात्र प्रयोगेण शृणु वक्ष्यामि ये गुणाः । मकरध्वजरूपोऽपि स्त्रीशतानन्दवर्द्धनः ॥ शतायुश्च भवेद्देवि वलीपलितवर्जितः । तेजस्वी बलसम्पन्नो वेगेन तुरगोपमः || सततं भक्षयेद्यस्तु तस्य मृत्युर्न जायते ॥ मलकी छालका चूर्ण और शुद्ध गंधक बरावर बराबर लेकर दोनों को एकत्र मिलाकर सँभलकी छालके रसकी सात भावना दें और फिर बारीक चूर्ण करके सुखाकर रख लें । I इसे १ मास तक सेवन करनेसे मनुष्य कामदेवके समान रूपवान हो जाता है तथा कामशक्ति अत्यधिक बढ़ जाती है । उसको बलि - पलित रहित १०० वर्षकी आयु प्राप्त होती है; तेज और बल बढ़ जाता है और गति अत्यन्त तीव्र हो जाती है। यदि इसे निरन्तर सेवन किया जाय तो ( अकाल ) मृत्यु नहीं होती । ॥ i ( मात्रा - २ - ३ रत्ती | खांड और शहदके साथ खाकर ऊपरसे दूध पीना चाहिये । ) For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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