SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 492
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अञ्जनप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः (८५८८) हरीतक्यञ्जनम् (१) लेप कर दें । इसे शरावसम्पुटमें बन्द करके भस्म ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ४८ ) करें । धुंवा बाहर न निकले, यह ध्यान रखें। हरीतकी वचाकुष्ठं पिप्पली मरिचानि च । इसे बारीक पीसकर आंखमें लगाने से हर विभीतकस्य मज्जा वा शङ्खनाभिर्मनःशिला॥ प्रकार का तिमिर रोग नष्ट होता है । एतानि समभागानि अजाक्षीरेण पेषयेत् । (८५९०) हरीतक्यादिवतिः नाशयत्तिमिरं कण्डूं पटलान्यर्बुदानि च ॥ . ( भै. र. । नेत्ररोगा. ; व. से. ; वृ. मा. ; हन्ति पुष्पं सपटलं रात्र्यान्ध्यं च नियच्छति । धन्व । नेत्ररोगा.) क्षताभिधातशोकेन अग्निदग्धं च वा पुनः ॥ .. . हरीतकी हरिद्रा च पिप्पल्यो लवणानि च । काचं च नीलिकां चैव सिद्धिमिच्छन्ति नेत्रयोः।। कण्डूतिमिरजिद् वतिर्न क्वचित्पतिहन्यते ॥ हर्र, बच, कूठ, पीपल, काली मिर्च, बहेड़ेकी हर, हल्दी, पीपल, सेंधा नमक, काला नमक मज्जा ( गुठलीकी मींग), शंखकी नाभि और मन- (संचल ). विड लवण, काच लवण और सामुद्रसिल; इनका समान भाग चूर्ण लेकर सबको एकत्र लवण: इनका चूर्ण समान भाग लेकर (पानीके साथ) मिलाकर बकरीके दूधमें खरल करके अत्यन्त महीन खरल करके बत्तियां बना लें। कर लें और मुखाकर सुरक्षित रखें। इसे आंखमें आंजनेसे कण्डू (खाज ) और यह अंजन तिमिर, कड् (खाज ), पटल, तिमिर का नाश होता है। यह वार्त कभी निष्फल अर्बुद, फूला, गत्र्यान्ध्य ( रतौंधा ), क्षत, आंख नहीं होती। पर चोट लगना, अत्यन्त शोक जनित नेत्र रोग, आंखका आगसे जल जाना, काच और नीलिकाका __(८५९१) हिङ्ग्वाद्यञ्जनम् नाश करता है। ( रा. मा. । नेत्ररोगा. ३) (८५८५) हरीतक्यञ्जनम् (२) हिङ्गुना द्रोणपुष्प्या वा रसेनाभितलोचनः । ( ग. नि. । नेत्ररोगा.) अचिरात्कामलाव्याधि नरो विजयते ध्रुवम् ॥ हांगका या द्रोणपुष्पी (गूमा ) के रसका अअनमधुघृतगर्भा धात्रीकल्केन वाह्यतो लिप्ता। ___ अंजन लगानेसे कामला रोग शीघ्रही नष्ट हो जाता है। अन्तधूमविदग्धा हरीतकी सर्वतिमिरनी ॥ ___ हर्र को बीचसे चीरकर उसकी गुठली निकाल (८५९२) हिताञ्जनम् दें और उसके भीतर मुरमे का चूर्ण तथा शहद और . ( रसायनसार) घी (समान भाग मिलित जितना आ सके उतना) नीलपुष्पाञ्जनांशी द्वौ समौ मर्देद रसाधने । भर दें एवं उसके ऊपर आमलेको पानीमें पीसकर · वराक्वाथद्रते चक्रीं शोषितां पलमानिताम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy