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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[हकारादि
हल्दी, आमला, कृष्ण केतकीका फूल और । (८५८६) हरिद्राद्यञ्जनम् (३) सफेद सरसों; इनके समान भाग मिलित चूर्णको
(ग. नि. । नेत्ररोगा. ३) । बरसातके पानीमें खरल करके वर्तियां बनावें।
जातीपत्ररसे पिष्टं निशायुग्मं रसाञ्जनम् । यह वर्ति समस्त नेत्ररोगोंको नष्ट करती है।
निशान्ध्यं नाशयत्येव यथा पापं जिनः स्मृतः ।। (८५८४) हरिद्राद्यञ्जनम् (१)
हल्दी, दारुहल्दी और रसौतके बारीक चूर्णको (बृ. मा. । नेत्ररोगा. : र. र. । नेत्ररोगा.) ।
। चमेलीके पत्तों के रसमें खरल करके अंजन बनावें। हरिद्रे त्रिफला लोभ्रं मधुकं रक्तचन्दनम् ।।
यह अंजन नतान्थ्य ( रतौंधे ) को अवश्य भृङ्गराजरसे पिष्ट्वा घर्षयेल्लोहभाजने ॥
_ नष्ट करता है । तथा ताने च सप्ताहं कृत्वा वति रजोऽथवा। पिच्चटी धूमदर्शी च तिमिरोपहतेक्षणः ॥
(८५८७) हरिद्राद्यवतिः मातनिश्यं जयेन्नित्यं सर्वनेत्रामयापहम् ।।
( भै. र. ; वृ. मा. । नेत्ररोगा. ) हल्दी, दारुहल्दी, हर, बहेड़ा, आमला, लोध, हरिद्वानिम्बपत्राणि पिप्पल्यो मरिचानि च । मुलैठी और लाल चन्दन; इनके समान भाग मिलित
भद्रमुस्तं विडङ्गानि सप्तमं विश्वभेषजम् ।। बारीक चूर्णको भंगरेके रसमें सात दिन लोहके खरल
गोमूत्रेण गुडी कार्या छागमूत्रेण चाअनात् । में और सात दिन ताम्र पात्रमें मर्दन करके बतियां बना लें या बारीक चूर्ण करके रखें।
ज्वरांश्च निखिलान हन्ति भूतावेशं तथैव च ॥ यह अञ्जन पिच्चिट, धूमदर्शन और तिमिर
वारिणा तिमिरं हन्ति मधुना पटलं तथा । रोग तथा अन्य समस्त नेत्ररोगांको नष्ट करता है। नक्तान्ध्य भृङ्गराजेन नारीस्तन्येन पुप्पकम् ।।
इसे प्रातःकाल तथा रात्रिको लगाना चाहिये। शिशिरेण परिस्रावमबुदं पिञ्चटं तथा ।। (८५८५) हरिद्राद्यञ्जनम् (२)
हल्दी, नीमके पत्ते, पीपल, कालीमिर्च, नागर(व. से. । नेत्ररोगा. ; : नि. । नेत्ररोगा. ३: मोथा, बायबिडंग और सांठ; इनके समान भाग
यो. र. ; र. र. । नेत्ररोगा.) | मिलित बारीक चूर्णको गोमूत्रमें पीसकर गोलियां बनालें हरिद्रां मधुकं पथ्यां' देवदारु च पेपयेत् । इसे बकरीके मूत्रमें घिसकर अंजन करनेसे आजेन पयसा श्रष्ठभिष्यन्दे तदअनम् ॥ घर और भूतावेशका: पानीमें घिसकर अंजन कर
हल्दी, मुलैठी, हर (पठान्तरके अनुसार नेसे तिमिरका; शहद में घिसकर आंख में लगानेस दाख ), और देवदारु; इनके समान भाग मिलित ! पटलकाः भंगरे के रस में घिसकर लगानेसे रतौंधे बारीक चूर्ण को बकरीके दूधमें खरल करके अंजन (नतान्ध्य )का; स्त्रीके दूधमें घिसकर लगानेसे फूलेका ब -जन नेत्राभिप्यन्दमें उतम गुणकारी है।
और शीतलजल में घिसकर आंखमें लगानेसे नेत्रस्राव, रक्षा इति पाउन्तरम्
अर्बुद और पिच्चिटका नाश होता है।
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