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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra लेपप्रकरणम् ] मक्षी की जड़ (चोक) का लेप व्रणशोथको फाड़नेके लिये उत्तम उपाय है । (८५७९) हीवेरादिलेप: www.kobatirth.org (८५८०) हरिद्रादि धूमः ( यो. र. 1 कासा. ) पञ्चमो भागः रात्रिद्वयं शिलाधूमपानात्कासश्रुतिः कृतः । जलपानादपि तथा क्षणेन क्षणदाक्षये ॥ ( रा. मा. । कुष्ठा. ८ ) ड्रीवेरोशी रद लैर्मलयज काश्मीरकाञ्जिकैर्लेपात् । गोरखमुंडीका चूर्ण सेवन करने से भी शरीर अपगच्छति दौर्गन्ध्यं मुण्डीचूर्णस्य पानाद्वा ॥ की दुर्गन्ध नष्ट हो जाती है । इति हकारादिलेप-प्रकरणम् अथ हकारादिधूम्र-प्रकरणम् हल्दी, दारूहल्दी, और मनसिल; इनका धूम्र पान करनेसे खांसी अवश्य नष्ट हो जाती है । उष:पान करनेसे भी खांसी नष्ट होती है । ४७५ सुगन्धवाला, खस, तेजपात, सफेद चन्दन और केसर के समान भाग मिलित चूर्णको कांजी में पीसकर लेप करने से शरीर को दुर्गन्ध नष्ट हो जाती है । ܟܐ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इति हकारादिधूम्र-प्रकरणम् (८५८२) हरितालादि प्रतिसारणम् ( यो. र.; वृ. मा. | नेत्ररोगा . ) हरितालवचादारु सुरसारसपेषितम् । अभयारसपिष्टं वा तगरं पिल्लनाशनम् ॥ हरताल, बच और देवदारुके समान भाग मिलित बारीक चूर्णको तुलसी के रसमें खरल करके (८५८१) हिङ्ग्वादिघूम्रः ( भा. प्र. म. खं. २ हिक्का . ) निर्धूमाङ्गारनिक्षिप्तहिनुमापरजोभवः । हिक्काः पञ्चापि हन्त्याशु धूमः पीतो न संशयः ।। निर्धूम अंगारों पर होंग और उर्द का चूर्ण डालने से जो धुवां निकले उसे पीनेसे पांच प्रकारकी हिचकी निस्सन्देह नष्ट हो जाती है । ( चिलममें रखकर आसानीसे धूम्र-पान किया जा सकता है । अथ हकाराद्यञ्जन-प्रकरणम् या तगर बारीक चूर्णको हर के रसमें खरल करके रोहां पर लगाने से वे नष्ट हो जाते हैं । (८५८३) हरिद्रादिवर्तिः ( . मा. | नेत्ररोगा. ) हरिद्रामलकी कृष्ण केतकश्वेतसर्षपैः । व्योमवारियुता वर्तिः सर्वनेत्रामयापहा ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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