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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org ४७४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [हकारादि हाथीदांतको सम्पुटमें बन्द करके भस्म करें। हींग, सोंठ, मिर्च, पीपल और सेंधा नमक यह भस्म और रसौत बराबर बराबर लेकर बकरीके समान भाग लेकर ( पानीके साथ ) पोस कर पेट दूधमें पीसकर सात दिन तक रोज लेप करने से पर लेप करके दिनमें सोनेसे समस्त प्रकारके अजीर्ण गजेंके भी बाल निकल आते हैं। नष्ट हो जाते हैं। (८५७३) हिङ्ग्वादिलेपः (१) (८५७६) हिलमोचिकादिलेपः ( यो. र. । सन्निपाता.) हिलमोची रसो युक्तश्चूर्णैरुदधिफेनजैः । हि द्विनिशा विशाला सैन्धवसुरदारुकुष्ठ- प्रलेपेन निहन्त्याशु देहदौर्गन्ध्यमुत्कटम् ॥ रविग्या समुद्रफेनके चूर्णमें हिलमोची (हुरहुर )का दत्तः क्रमेण लेपो हन्ति महाकर्णकग्रन्थिकम् ॥ रस मिलाकर लेप करने से शरीरको तीव्र दुर्गन्ध भी हींग, हल्दी, दारुहल्दी, इन्द्रायणकी जड. सेंधा नष्ट हो जाती है। नमक, देवदारु और कूठके समान भाग मिलित (८५७७) हेमक्षीर्यादिलेपः (१) चूर्णको आकके दूध पीसकर लेप करनेसे कर्णमूल (शा. सं. । खं. ३ अ. ११) ( सन्निपात ज्वरमें होनेवाली कानके पीलेकी सूजन) हेमक्षीरी विडङ्गानि दरदं गन्धकस्तथा । का नाश होता है। ददूनः कुष्ठसिन्दुरे सर्वाण्येकत्र मर्दयेत् ॥ (८५७४) हिजवादिलेपः (२) धत्तूरनिम्बताम्बूलीपत्राणां स्वरसैः पृथक । (यो. र. । शूला.) | अस्य प्रलेपमात्रेण पामादविचर्चिकाः ।। हि तैलं सलवणं गोमूत्रेण विपाचितम् ।। कण्डूश्च रकसश्चैव प्रशमं यान्ति वेगतः॥ ___स्वर्णक्षीरी की जड़ (चोक), बायबिडंग, हिंगुल, नाभिस्थाने प्रदातव्यं यस्य शूलं सवेदनम् ॥ होग, तेल, सेंधा नमक और गोमूत्रको एकत्र गंधक, पमांडके बीज, कूठ और सिन्दूर ; इनका चूर्ण समान भाग लेकर सबको एकत्र करके धतूरेके मिलाकर पकाकर ( गाढ़ा लेपसा बनाकर ) नाभि पत्तोंके तथा नीम और ताम्बूली ( पान )के पत्तोंके पर लेप करनेसे शूल नष्ट होता है । रसमें पृथक् पृथक् एक एक दिन खरल करें। ( अथवा-हींग और सेंधा नमकके कल्क इसे ( पानी या तेलमें मिलाकर ) लेप करतथा गोमूत्रके साथ तेल पकाकर नाभि पर लगाने नेसे पामा, दाद, विचर्चिका (खुजली ), खाज और या नाभिमें भरनेसे भी लाभ होगा। ) रकस (स्राव सहित खुजली युक्त पिडिका)का नोश (८५७५) हिवादिलेपः (३) होता है। (च. द. । अग्निमांद्या. ६) . (८५७८) हेमक्षीर्यादिलेपः (२) आलिप्य जठरं प्राज्ञो हिङ्गुन्यूषणसैन्धवैः। (शा. सं. । खं. ३ अ. ११) दिवास्वमं प्रकुर्वीत सर्वाजीर्णप्रणाशनम ॥ हेमक्षीयर्यास्तथा लेपो व्रणे परमदारणः ॥ . For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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