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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेपप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः ४७३ हरे, सहजनेकी छाल, करञ्जकी छाल (या (८५६९) हस्तिकर्णपलाशादिलेपः बोज), आककी जड़, पुनर्नवा ( बिस खपर ) की ( व. सं. । गलगण्डा.) जड और सेंधा नमक; इनका चूर्ण समान भाग तण्डलोदकपिष्टेन मूलेन परिलेपतः । लेकर गोमूत्रमें पीसकर पिटिका तथा कच्ची और हस्तिकर्ण पलाशस्य गलगण्डः प्रशाम्पति ॥ पक्की ग्रन्थि एवं विद्रधि पर लेप करना लाभदायक है। ___ हस्तिकर्ण पलाशको जड़को चावलोंके पानीमें (८५६६) हरेण्वादिलेपः (१) पीसकर लेप करनेसे गलगण्डका नाश होता है। (वृ. मा. । विसर्पा.) (८५७०) हस्तिदन्तादिलेपः (१) हरेण्वो ममूराश्च मुद्गाश्चैव सशालयः।। पृथक्पृथक्पदेहाः स्युः सर्वे वा सर्पिषा सह ॥ (या. र. } बगशाथ. ; वृ. नि. र. । व्रणशोथा. ; रेणुका, मसूर, मूंग और शाली चावल; इन वृ. मा. । गशोथा. ) में से किसी एकके या सबके चूर्णको घीमें मिलाकर हस्तिदन्तो जले घृष्टो बिन्दुमात्रः प्रलेपितः । लेप करनेसे विसर्प का नाश होता है। । अत्यन्तकठिने चापि शोफे पाचनभेदनः ॥ (८५६७) हरेण्वादिलेपः (२) हाथीदांतको पानीके साथ घिस कर एक बिन्दु (शा. सं. । खं. ३ अ. ११) मात्र लेप करनेसे अत्यन्त कठिन ब्रणशोथ भी पक हरेणुनत शैलेयमुस्तैलागरुदारुभिः। कर फूट जाता है। मांसीरास्नास्बूकैश्च कोष्णो लेपः कफातिनुत् ॥ (८५७१) हस्तिदन्तादिलेप: (२) रणुका, तगर, छरीला (पत्थर फूल), नागर- (र. र. ग्मायन खं. । उप. '५ ) मोथा, इलायची, अगर, देवदारु, जटामांसी, रास्ना हस्तिदन्तस्य दग्धस्य समं योज्य रसाञ्जनम् । और अरण्डमूलकी छाल; इनका चूर्ण समान भाग अजाक्षीरेण तपिष्टा लेपनात्केशरञ्जनम् ।। लेकर सबको (पानीमें) पीसकर मन्दोष्ण करके लेप : करनेसे कफज शिर पोड़ा नष्ट होती है। हाथीदांतकी भस्म और रसौत बराबर बराबर लेकर बकरीके दृधमें पीसकर लेप करनेसे सफेद (८५६८) हलिन्यादियोगः - बाल काले हो जाते हैं। (ग. नि. । विस्फोटा. ४०) मूलबीजान्विता पिष्टा काञ्जिकेन प्रलेपतः। (८५७२) हास्तदन्ताधा लपः हलिनी देवदाली वा दग्धिका स्फोटनाशिनी ॥ (रा. मा. । शिरो रोगा. १ ; वृ. मा. । क्षुद्र लांगली ( कलियारी ) या देवदाली (बिंडाल) रोगा. ; व. से. । क्षुद्ररो. ; शा. ध.। खं. ३ अथवा दुग्धिका ( दूधी ) और मूलीके बीज समान अ. ११) भाग लेकर कांजीमें पीसकर लेप करनेसे विस्फोटका द्विपदचनः पुटदग्धः साजक्षीरो रसाअनोपेतः । नाश होता है। दिनसप्तकं प्रलेपात् खलतेरपि केशसअननः।। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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