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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [हकारादि हरताल, दूर्वा घास और सेंधा नमक समान (८५६२) हरिद्रादिलेपः (४) भाग लेकर गोमूत्रमें पीसकर लेप करनेसे रकस (यो. र. । व्रणा.) ( खाजबाली स्रावहीन फुसियों ) का तथा पुराने हरिद्राभस्मचूर्णाभ्यां प्रलेपो दारणः परः ॥ दादका शीघ्रही नाश हो जाता है। हल्दीकी भस्म और पत्थरका चूना समान (८५५९) हरिद्रादिलेपः (१) भाग लेकर (पानी या शहदमें मिलाकर ) लेप कर नेसे बण फट जाता है। (वै. म. र. । पटल ११) (८५६३) हरीतक्यादिलेपः (१) निशामरिचसिन्धृत्यैः सार्ध नृजलपेषिता। (यो. त. । त. ७१) लेपात् किटिभसंहन्त्री कुलत्थशरपुसिका ॥ | हरीतकीसैन्धवताक्ष्यशैलैः हल्दी, काली मिर्च, सेंधानमक, कुलथी और सगैरिकैः स्वच्छजलमपिष्टैः। सरफोंका समान भाग लेकर मनुष्यके मूत्रमें पीसकर | | बाह्ये प्रलेपं नयनस्य कुर्याद लेप करनेसे किटिभ कुष्ट नष्ट होता है । सघोऽक्षिरोगोपशमार्यमेनम् ॥ हर, सेंधानमक, रसौत और गेरु समान भाग __(८५६०) हरिद्रादिलेपः (२) लेकर स्वच्छ जलमें पीसकर आंखोंके बाहर लेप ( व. से. । अर्बुदा. : वृ. मा. :। यो. र । करनेसे नेत्ररोग (अक्षिपाकादि)का नाश होता है । अर्बुदा.) (८५६४) हरीतक्यादिलेपः (२) हरिद्रालोध्रपतगृहधुममनःशिलाः । (ग. नि. । कुष्टा. ३६ ; ग. मा. । कुष्टा. ८) मधुप्रगाढो लेपोऽयं मेदोऽर्बुदहरः परः ॥ | हरीतकीसैन्धवसोमराजी विडङ्गसिद्धार्थकरनबीजैः। हल्दी, लोध, पतङ्ग काष्ट, घरका धुंवां और . करोति गोमूत्रयुतैः प्रपिष्टैः मनसिल समान भाग ले कर चूर्ण करके शहदमें कुष्ठपणाशं विहितः प्रलेपः॥ मिलाकर लेप करनेसे मेदजनित अर्बुद नष्ट होता है। हर्र, सेंधानमक, बाबची, बायबिडंग, सफेद (८५६१) हरिद्रादिलेपः (३) सरसों और करञ्जबीज समान भाग लेकर गोमूत्रमें ( भा. प्र. । म. खं. २) पीस कर लेप करनेसे कुष्ठ नष्ट होता है । (८५६५) हरीतक्यादिलेपः (३) हरिद्राजालिनी चूर्ण कटुतैलसमन्वितम् । (वै. म. र. । पटल १६).. एष लेपो वरः प्रोक्तो दर्शसामन्तकारकः ॥ हरीतकीशिगुकरञ्जभास्वत ___ हल्दी और कड़वी तूंबी (या देवदाली ) के पुनर्नवासैन्धवमिश्रमूत्रैः। चूर्णको सरसोंके तेलमें मिलाकर लेप करनेसे अर्शके पिष्टैः प्रशस्तः पिटकासु लेपो मस्से नष्ट हो जाते हैं। ग्रन्ध्यामपच्यामथ विद्रधौ च ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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