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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेपप्रकरणम् ] पश्चमो भागः ४७१ नन्तर उसमें पीपलका चूर्ण १० तोले तथा जायफल, क्षय, ५ प्रकारकी खांसी, ६ प्रकारका अर्श, ८ लौंग, दालचीनी, इलायची तेजपात और नागकेसर प्रकारके उदर रोग, प्रमेह, अरुचि, पाण्डु, समरर इनका चूर्ण एवं कस्तूरी ११-१॥ तोला मिलाकर वातव्याधि, आम, श्वास, छर्दि, अठारह प्रकारक मुख बन्द करके रख दें और १५ दिन पश्चात् । कुष्ट, शोष, शूल, भगन्दर, शर्करा, मूत्रकृच्छू और उसमें निर्मलीके बीजोंका चूर्ण डाल दें कि जिससे अश्मरीका नाश होता है। यह अत्यन्त बलवीर्य आसव निर्मल हो जायगा। इसके १५ दिन पश्चात् और कामशक्ति वर्द्धक तथा कृषोंको पुष्ट करनेवाल छान कर बोतलों में भर दें। __ है । इसके प्रभावसे वन्ध्या स्त्रीको भी पुत्र प्राप्ति इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे धातु- होती है । इति हकाराघासवारिष्टप्रकरणम् । अथ हकारादिलेप-प्रकरणम् (८५५५) हयादिलेपः ( पानीमें घोलकर ) इसका लेप करनेसे बाल (वृ. नि. र. । त्वग्दोषा.) गिर जाते हैं। इयवेल्लाग्निभल्लातदन्तीम्पाकनिम्बजैः। (८५५७) हरितालादिलेपः (२) कालिक पेषितैर्लेपः श्वेतकुष्ठविनाशकृत ॥ (वै. म. र. । पट. १८) ___ असगन्ध, बायबिडंग, चीता, भिलावा, अम. हरितालवचाकुष्ठचूर्ण पीतवटच्छदम् । लतासकी छाल, और निबौली (नीमके बीज) समान , अद्भिः पिष्ट्वा मुखे लिम्पेदव्यालोपनलोलुपः । भाग लेकर कांजीमें पीसकर लेप करनेसे श्वेत कुष्ट हरताल, बच, कूठ, और बड़के पीले पत्ते नष्ट होता है। समान भाग लेकर पानीमें पीसकर लेप करनेसे (८५५६) हरितालादि लेपः (१) मुखव्यंग (झांई)का नाश होता है । (व. से. । स्त्रीरोगा.) (८५५८) हरितालादिलेपः (३) हरितालभाग एको भागाः पञ्चैव शक्तचूर्णस्य। (ग. नि. । कुष्ठा. ३६ ; रा. मा. । कुष्ठा. ८) भागः पलाशभस्मत एतल्लेपाकचा न स्युः॥ गोमूत्रपिष्टैईरिताला हरताल का चूर्ण १ भाग, शंखका चूर्ण ५ भाग, सिन्धृद्भवैलेपितमादरेण । और पलाश (ढाक)की राख १ भाग लेकर सबको प्रयाति नाशं रकसं नराणां एकत्र खरल कर लें। दद्रुश्च यायाचिरसंभरूदा॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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