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४६२ भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[हकारादि द्रव पदार्थ-बिजौरेका रस, दही, दूध, (८५३२) हिङ्ग्वादिघृतम् (२) बेरका क्वाथ, मूलीका क्वाथ, और अनारका रस ( वृ. मा. ; व. से.; यो. र.; र. र. । उन्मादा.; २-२ सेर ।
ग. नि. । उन्मादा. १; यो. त. । त. ३८ ; २ सेर घी में उपरोक्त कल्क और द्रव पदार्थ ।
व पदाथ वृ. यो. त. । त. ८८ ; च. द. । उन्मादा. . मिला कर मंदाग्नि पर पकावें । जब जलांश शुष्क
२०; वा. भ. । उ. अ. ६) हो जाय तो घीको छान लें। __यह घृत वातज गुल्म, शूल, आनाह (अफारा)
हिशुसौवर्चलव्योपैपिलांशै ताटकम् ।
है योनिरोग, अर्श, ग्रहणी विकार, श्वास, कास, अरुचि, चतुर्गुणे गवां मूत्रे सिद्धान्मादनाशनम् ॥ ज्वर, वातरोग और पार्श्वशूलको नष्ट करता है। कल्क-हींग, संचल ( कालानमक ), सोंठ, (मात्रा--१-२ तोला ।)
मिर्च और पीपल १०-१० तोले । (८५३१) हिङ्ग्वादिघृतम् (१) ८ सेर धीमें यह कल्क और ३२ सेर गोमूत्र (च. सं. । चि. स्था. अ. ५ गुल्मा. ; व. से.; मिलाकर पकावें। वा. भ. । चि. अ. १४ ; सु. सं. । चि. अ.
यह घृत उन्मादको नष्ट करता है। ४२ गुल्मा.) हिङ्गुसौवर्चलाजाजीविडदाडिमदीप्यकैः ।
( मात्रा-१-२ तोला।) पुष्करव्योषधान्याम्लवेतसक्षार चित्रकैः॥ (८५३३) हिरवादिघृतम् (३) शठीवचाजगन्धैलासुरसैश्च विपाचितम् ।।
(वा. भ. । उ. अ. ५; ग. नि. । शूलानाहहरं सर्पिर्दध्ना चानिलगुल्मिनाम् ॥
. भूतोन्मादा. १) कल्क- हींग, संचल, (काला नमक), जीरा, विड नमक, अनारदाना, (गा अनारकी जड़की छाल),
हिसर्षपषड्ग्रन्था व्योषैरईपलोन्मितैः ।
शुरू अजमोद, पोखरमूल, सोंठ, मिर्च, पीपल, धनिया, चतुर्गुणे गवां मूत्रे घृतपस्थं विपाचयेत् ।। अम्लवेत, जवाखार, चीतामूल, कचूर, वच, अजमोद, तत्पाननावनाभ्यङ्गैर्देवग्रहविमोक्षणम् ॥ इलायची और तुलसी समान भाग मिश्रित २० तोले। कल्क-हींग, सरसों, बच, सोंठ, मिर्च
२ सेर घीमें यह कल्क और ८ सेर दही और पीपल २॥-२॥ तोले । मिलाकर पकावें।
२ सेर घीमें यह कल्क और ८ सेर गोमूत्र ___ यह घृत वात-गुल्म, शूल और आनाहको मिलाकर पकावें । नष्ट करता है।
इसे पीने, तथा इसको नस्य लेने और मालिश (मात्रा-१-२ तोला ।)
करनेसे देवग्रहजनित उन्माद नष्ट होता है ।
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