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घृतप्रकरणम् ]
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पञ्चमी भागः
अथ हकारादिघृतप्रकरणम्
(८५२८) हरिद्रादिघृतम्
( च. सं. चि. स्था. ६ अ. २० पाण्डवा. ; व. से. ; ग. नि. । पाण्ड्वा. ; च. द.; भै. र. ; वृ. मा. ; यो. र. । पाण्ड्वा.) हरिद्रात्रिफलानिम्बवळामधुकसाधितम् । सक्षीरं माहिषं सर्पिः कामलाहरमुत्तमम् ॥
कल्क - - हल्दी, हर्र, बहेड़ा, आमला, नीमकी छाल, बला ( खैरैटी की जड़ ), और मुलैठी समान भाग मिश्रित २० तोले लेकर पानीके साथ बारीक पीस लें ।
क्वाथ - - उपरोक्त वस्तुएं समान भाग मिश्रित २ सेर लेकर १६ सेर पानी में पकावें और ४ सेर रहने पर छान लें।
२ सेर भैंस के घीमें उपरोक्त कल्क और काथ तथा ४ सेर गोमूत्र मिलाकर मन्दानि पर पकावें । जब जलांश शुष्क हो जाए तो घीको छान ले
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यह घृत कामलाको नष्ट करता है । ( मात्रा -- १-२ तोला । ) (८५२९) हरीतक्यादिघृतम् ( व. से. । हृद्रोगा. )
हरीतकी पुष्कर नागराहयैadrस्थालवणैश्च कल्कैः ।
सहिङ्गुभिः साधितमेव सर्पिहितञ्च हृत्पार्श्वगदेऽनिलोत्थे ॥
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कल्क-- हर्र, पोखरमूल, सांठ, जौ, आमला, सेंधा नमक और हींग, समान भाग मिश्रित २० तोले लेकर पानी के साथ पीस लें ।
२ सेर घी में यह कल्क और ८ सेर पानी मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें। जब पानी जल जाय तो घीको छान है ।
यह घृत वातज हृद्रोग और पार्श्व शूलादिमें उपयोगी है।
(मात्रा -१ से दा तोले तक । )
(८५३०) हवषादिघृतम्
र. ;
( च. सं. । चि. स्था. ६ अ. ५ गुल्मा. ; वृ. मा. ; धन्व. ; र. र. । गुल्मा. २९ ; ग. नि. । घृता. १; वा. भ. । चि. अ. १४ गुल्मा. ; व. से. । गुल्मा. )
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हषा व्योषपृथ्वीकाचव्य चित्रक सैन्धवैः । साजाजीपिप्पलीमूलदीप्यकैर्विपचेद् घृतम् ॥ मातुलुङ्गदधिक्षीरकोलमूलकदाडिमैः । रसैस्तद्वातगुल्मानं शूलानाहविमोक्षणम् ॥ योन्यर्शो ग्रहणीदोषश्वासका सारुचिज्वरान् । वातहृत्पार्श्वशूलश्च घृतमेतद्वयपोहति ॥
कल्क - - हपुषा, सोंठ, मिर्च, पीपल, हिगुपत्री ( पाठान्तरके अनुसार मुनक्का ), चव, चीतामूल, सेंधा नमक, जीरा, पीपलामूल और अजवायन समान भाग मिलित २० तोले लेकर पानीके साथ 'बारीक पीस लें I