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________________ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कषायप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः ४३५ (८४२४) हरीतक्यादिकषायः हर्र, फूलप्रियंगु, पीपल, लोध, दारुहल्दी, ( धन्व. । उरुस्तम्भा.) | हल्दी और तेजबल समान भाग लेकर क्वाथ बनावें हरीतकी शृङ्गवेरं देवदारु च चन्दनम् । इसमें शहद मिलाकर उससे कुल्ले करनेसे ज्वरमें क्वाथयेच्छागदुग्धेन अपामार्गस्य मूलकम् ।। होनेवाली मुखकी कटुता और मुखरोग नष्ट होकर जाशूलमुरुस्तम्भं सप्तरात्रेण नाशयेत् ॥ मुख शुद्ध हो जाता है और भोजनमें रुचि उत्पन्न हर, अदरक (सांठ), देवदारु, लाल चन्दन, होती है। और अपामार्गको जड़ समान भाग मिलित (२॥ (८४२७) हरीतक्यादिकाथः (३) तोले) लेकर कूटकर (२० तोले) बकरीके दूधमें (वृ, नि. र. । सन्निपाता.) डालें और उसमें (१ सेर) पानी मिलाकर पकावें ।। हरीतकीपर्पटहारहूराजब पानी जल जाए तो दूधको छान लें । शम्बूकपुष्पैः काकीपयोदैः। इसे पीनेसे सात दिनमें जंघाशूल और उरु- शम्पाकदेवायभारतीभिः स्तम्भका नाश होता है। श्चित्तभ्रम हन्ति कृतः कषायः ।। (८४२५) हरीतक्यादिकाथः (१) हर्र, पित्तपापड़ा, मुनक्का, शंखपुष्पी, कुटकी, (भै. र. । वृद्ध्य.) | नागरमोथा, अमलतासका गूदा, देवदारु और ब्राह्मी हरीलकी वचा शुण्ठी त्रिता स्वर्णपत्रिका।। समान भाग लेकर क्याथ बनावें । एलाद्वयं देवपुष्पं क्याथयित्वा जलं पिबेत् ॥ ___यह क्वाथ चित्तभ्रम सन्निपातको नष्ट कअनेन प्रशमं यान्ति अध्नकासज्वरा धुवम् ।। ___ हरै, बच, सांठ, निसोत, सनाय, छोटी और (८४२८) हरीतक्यादिकाथः (४) बड़ी इलायची तथा लौंग समान भाग लेकर क्वाथ (भै. र. । उदरा. ; यो. र. ; वृ. मा. । शोथोदरा.; बनावें। वृ. नि. र. । उदरा.; वृ. यो. त. । त. १०५) ___ यह क्वाथ अध्न, कास और चरको अबस्य हरातकानागरदेवदारुनष्ट कर देता है । पुनर्नवाच्छिन्नाहाकपायः। (८४२६) हरीतक्यादिकाथः (२) सगुग्गुलुमूत्रयुतन्तु पेयः शोथोदराणां प्रवरः प्रयोगः ॥ (व. से. । ज्वरा.) हर्र, सेांट, देवदारु, पुनर्नवा और गिलोय हरीतकी प्रियङ्गश्च पिप्पलीलोध्रमेव च ।। समान भाग लेकर क्वाथ बनावें । दार्वी हरिद्रा तेजोहा सक्षौद्रं मुखधावने ॥ इसमें गोमूत्र और शुद्र गूगल मिलाकर पीनेसे एतेन कटुभावाच्च मुखरोगश्च शाम्यति । शोथोडर का नाश होता है । शोथोदरके लिये वा विशदतामेति भक्तच्छन्दश्च जायते ॥ । यह एक श्रेष्ट योग है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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