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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
हल्दी, हर्र, बहेड़ा, आमला, नीमको छाल, पटोलकी जड़, कुटकी, बव और मजीठ समान भाग लेकर क्वाथ बनावें ।
हल्दी, चीतामूल, नीमकीछाल, खस, अतीस, चच, कूठ, इन्द्रजौ, मूर्वा और पटोल समान भाग लेकर क्वाथ बनावें ।
यह क्वाथ कफपित्तज कुछको नष्ट करता है । (८४१९) हरिद्रादिकषायः (५) (भै. र. । बालरोगा .; वृ. मा. व. से.; च. द. । बालरोगा. ६३; यो. त. । त. ७७ ) हरिद्राद्वययष्टयाह सिंही शक्रयवैः शिशोर्ज्वरातिसारघ्नः : कपायः स्तन्यदोषनुत' हल्दी, दारूहल्दी, मुलैठी, कटेली और इन्द्रजौ
: कृतः ।
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समान भाग लेकर क्वाथ बनावें 1
यह क्वाथ बालकोंके ज्वरातिसार और स्तन्य- हरिद्राकल्कसंयुक्तं गोमूत्रस्य पलद्वयम् । दोषको नष्ट करता है । पिवेन्नरः कामचारी कण्डूपामाविनाशनम् ॥
(८४२०) हरिद्रादिक्काथः
१० तोले गोमूत्र में पत्थर पर पिसी हुई हल्दी (३ माशा) मिलाकर पीनेसे कण्डू और पामाका नाश होता है ।
( ग. नि. । ज्वरा. १ ) हरिद्रां चित्रकं निम्बशीरातिविषे वचाम् । कुष्ठमिन्द्रयवान् सूत्र पटोलं चापि साधितम ॥ पिवेन्मरिच संयुक्तं सक्षाद्रं कफजे ज्वरे ॥
इसमें काली मिर्च का चूर्ण और शहद मिलाकर पीने से कफज्वर नष्ट होता है ।
(८४२१) हरिद्रादिगणः
(सु. सं. 1 सू. अ. ३८ ) हरिद्रा दारूहरिद्रा कलशी कुटजबीजानि
मधुश्चेति ।
१ श्वासकासवमीहर मिति पाठभेदः
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[ हकारादि
eat वचाहरिद्रादिगणौ स्तन्यविशोधनौ । आमातीसारशमनौ विशेषाद्दोषपाचनौ ॥
हल्दा, दारूहल्दी, शालपर्णी, इन्द्रजौ और मुलैठी । इन ओषधियोंके योगको “हरिद्रादिगण" कहते हैं ।
हरिद्रादि गण और वचादि गण स्तन्यशोधक, (त्रियोंके दूधको शुद्ध करनेवाले), और आमातिसार नाशक एवं विशेषतः दोष पाचक हैं ।
(८४२२) हरिद्रादियोगः
( ग. नि. । कुष्ठा. ३६; व. से.; वृ. नि. र. । कुष्टा. )
इस पर किसी विशेष परहेज़ की आवश्यकता नहीं है।
(८४२३) हरीतकीयोगः (भै. र. । वातरक्ता.) हरीतकीमाय समं गुडेन
एकाथवा द्वे च ततो गुडूच्याः । Farrisनुपोतः शमयत्यवश्यं प्रभिन्नमाजानुजवातरक्तम् ॥
१ या दो हरों को पीसकर गुड़के साथ ara और फिर गिलोयका क्वाथ पीवें ।
इससे जानु तक फैला और स्फुटित वातरक्त भी अवश्य नष्ट हो जाता है ।
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