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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir WWWS अथ हकारादिकषायप्रकरणम् (८४१५) हरिद्रादिकषायः (१) हल्दी, नागरमोथा, हर, बहेड़ा, आमला, (ग. नि. । अर्को. ४) कुटकी, नीमकी छाल, पटोल, देवदारु और कटेली पलानि पञ्च कुर्वीत रजन्यास्तु प्रमाणतः । समान भाग लेकर क्वाथ बनावें ।। कौटजस्याथ वल्कस्य द्विपलं मूक्ष्मकुट्टितम् ।। यह क्वाथ सन्निपात ज्वर, अग्निमांद्य, द्वयाढके वारिणः साध्यमष्टभागावशे पितम् । मुख प्रसेक (थूक अधिक आना), शोष, खांसी तत्कषायं पिवेद्युक्त्या शीतं माक्षिकसंयतम ॥ और अरुचिको नष्ट करता है। एतेन पित्तनातानि रक्तजान्यपि सर्वशः। (८४१७) हरिद्रादिकषायः (३) रक्तातिसारश्च तथा रक्तपित्तं च शाम्यति ॥ (हा. सं. । स्था. ३ अ. ३१, ग. नि. । ___ हल्दी २५ तोले और कुड़ेकी छाल १० तोले लेकर बारीक कूट लें और १६ सेर पानीमें पकायें __प्रमेहा. ३०) जब २ सेर रह जाय तो छानकर ठंडा कर लें। हरिद्राद्वितयं शुण्ठी विडङ्गानि हरीतकी। इसमें शहद मिलाकर पीनेसे पित्तज और कफममेहे विहितः क्याथोऽयं मधुना सह ॥ रक्तज अर्शका नाश होता है । यह क्वाथ ग्ता- हल्दा, दारुहन्दी, सोंठ, बायबिडंग और तिसार और रक्तपित्तको भी नष्ट करता है। हर्र समान भाग लेकर क्वाथ बनावें । (मात्रा-प्रातः, दोपहर और सायं १०- , इसमें शहद मिलाकर पीनेसे कफज प्रमेहका १० तोले । मधु ? तोला ।) । नाश होता है। (८४१६) हरिद्रादिकषायः (२) (८४१८) हरिद्रादिकषायः (४) (ग. नि. । वग. १) (ग. नि. । कुष्टा. ३६ ) हरिद्रा भद्रमुस्तं च त्रिफला कटुरोहिणी। निशोत्तमानिम्बपटोलमूल पिचुमन्दः पटोली च देवदारु निदिग्धिका ॥ तिक्तावचालोहितयष्टिकाभिः । एषां कषायः पीतस्तु सन्निपातज्वरं जयेत् । कृतः कषायः कफपित्तकुष्ठं अविपक्ति प्रसेकं च शोषं कासमरोचकम् ॥ । सुसेवितो धर्म इवोच्छिनत्ति ॥' ૫૫ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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