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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ सकारादि
(समान भाग मिलित) मिलाकर अच्छी तरह मथे। स्वर्जिकाचूर्णसंयुक्तं वीजपुररसं तिपेत् । इसमेंसे ११ तोला खाकर दूध पीनेसे शुक्र-क्षय कर्णस्रावस्त्रादाहाः प्रणश्यन्ति न संशयः ।। सम्बन्धी समस्त विकार नष्ट होते तथा बन्ध्या को पुत्र प्राप्त होता है।
विजो रेके स्समें सजीका चूर्ण मिलाकर (८४१४) स्वजिकादियोगः कानमें डालनेसे कर्णसाच, कर्णपोड़ा और दाहका ( शा. सं. । खं. ३ अ. ११) । नाश होता है।
इति सकारादिमिश्रप्रकरणम्
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