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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः ४३१ (८४०९) स्नुपत्रयोगः इसे भगन्दरमें सूराख की ओरको लगावें । इससे ( वै. म. र. । पटल ६ ) समस्त शरीरगत नाड़ोत्रण भी न हो जाता है। स्विनं निष्पीडितं स्नुह्याः पत्रं पायौ निधापयेत्। (८४१२) स्नुहीस्वेदः दुर्नामकृमिकण्डूतिशोफरुक्शान्तिकृत् परम् ॥ ( व. से. । श्लीपदा.) ___ स्नुही ( सेंड-थूहर ) के पत्तोंको आग पर | स्नुहीगण्डीरिकास्वेदो नाशयेदवुदानि च । सेककर मलकर गुदा पर बांधनेसे अर्श, कृमि, खाज, शोथ और पीडाका नाश होता है। | लवणेनाऽधवा स्वेदः सीसकेन तथैव च ॥ (८४१०) स्नुपत्रयोगः स्नुही (सेंड-थूहर) के टुकड़ोंसे स्वेदित कर नेसे अथवा सेंधा नमकसे स्वेदित करनेसे या ( वै. म. र. । पट. १६ ) | सीसेसे स्वेदित करनेसे अर्बुद (रसौली)का नाश द्रुतजातपति सुकठिनं नाश । हो जाता है। __ यति व्रणं चिरन्तनं चापि । (सेंडके टुकड़ोंको पानीमें उबालकर उस स्विनं विमृज्य लिप्तं पानीकी भाप देनी चाहिये या उन्हें भापकी सहास्नुपत्रं पञ्चशैदिवसैः ॥ यतासे बार बार गरम करके रसौली पर रखना नवीन अथवा पुराने कठिन व्रण पर स्नुही या बांधना चाहिये । सेंधानमक और सीसेके टुकड़े (सेंड) के पत्तेको उबालकर पीस कर लेप करनेसे को सहने योग्य गरम करके कपड़ेमें लपेटकर रसौली वह ५-६ दिनमें नष्ट हो जाता है । पर रखना चाहिये। (८४११) स्नुहीक्षीराद्या वतिः (८४१३) स्वगुप्ताद्यो योगः (ग. नि. । भगन्दरा. ; व. से. । नाडीव्रणरो. : (वृ. यो. त. । त. १०१; वृ. मा.। मूत्राघाता.; वृ. मा. । भगन्दरा, ; भा. प्र. । मं. ग. नि. । मूत्राघाता. २८; यो. र. । मूत्राघाता.) खं. २ नाडीव्रणा.) स्वगुप्ताफलमृद्वीकाकृष्णेक्षुरसितारजः। स्नुपर्कदुग्धदा:भिर्वति कृत्वा विचक्षणः । समानमर्धभागानि क्षीरक्षौद्रघृतानि च ॥ भगन्दरगति ज्ञात्वा पूरयेत्तां प्रयत्नतः॥ सर्व सम्यग्विमथ्याक्षमात्र ली पयः पिबेत । एषा सर्वशरीरस्थां नाडी हन्यादसंशयम् ॥ हन्ति शुक्रक्षयोत्यांश्च दोषान्वन्ध्यासुतपदम् ॥ __दारुहल्दीका चूर्ण, स्नुही (सेंड-थूहर)का कौंचके बीज, मुनका, काली ईखका रस और दूध और आकका दूध समान भाग लेकर सबको मिश्री समान भाग लेकर सबको एकत्र पीस लें। एकत्र मिला कर (कपड़ेपर लगाकर) बत्ती बनावें। इसमें इससे आधा दूध, शहद और घीका मिश्रण For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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