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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ भारत-अवब्य-रत्नाकरः [सकारादि (८३८०) स्वर्णसिन्दूरम् (८३८१) स्वर्णादिगुटिका ( मै. र. । वाजीकरणा.) (र. का. थे. । नेत्रगेगा.) पलं रसेन्द्रस्य च गन्यम्य स्वर्ण रूप्या मुलार्को वार्षिफेनवरापवाः ! हेम्नोऽपि कर्ष परिणव सम्या। शमच्योप निशानुत्ववालं मधुपष्टिका ।। स्टमरोहस्थ रसेन याम सर्व च क्लीतकाम्भोधिः अपिष्टं बटिका हरेन् । यामं विमर्धाय कुमारिकायाः || । अशेषनयनातवास्तदुपदबदुस्वरान् ।। तत्काचप्यां निहितं प्रयत्नान । स्वर्ण मस्म, चांदी भस्म, ताम्र भस्म, मोती पचेद विषिज्ञः सिकनारूप यन्वे । । भस्म, लामभस्म ( अश्या आककी जड़को छाल ) सतो रजश्चोर्ध्वगतं मुरम्यं समुद्रफेन, हरं, बहेडा, आमला, गिलोय, शंखभस्म, अमृता यबादरुणभं यन् ।। सोंठ, मिर्च, पीपल, हल्दी, तुत्य मम्म, प्रचाल भस्म क्योजयेत्सर्वगदेषु वीक्ष्य और मुलैठी; इनका चूर्ण समान भाग रेकर सबको धातुं बलं वहिमयो वयश्च । एकत्र मिलाकर मुलेठोक क्वाथमें म्बरल करें और रसायनं दृष्यतरच बल्यं । (२-२ रत्तोकी ) गोलियां बनाकर सुखा लें। मेषाधिकान्तिस्मरवर्दनश्च ।। इनके सेवनसे उपद्रवयुक्त समस्त नेत्ररोग शुद्ध पारद ५ तो., शुद्ध गन्धक ५ तो नष्ट होते हैं। और सोनेके कर्कश तो. ले कर प्रथम स्वर्ण और ___ स्वल्पकस्तृरी भैरवो रसः पारेको एकत्र मिला कर खरल करें । जब दोनों ( भै, र. : र. ग. सु. : धन्द. ! चर) अच्छी तरह मिल जाएं तो गन्धक मिला कर बाल करें और कजली हो जाने पर उसे १-१ पहर प्र. सं. ९७१ “करतूरी मैग्यो रसः" देखिये। वटांकुरोंके रस और घृतकुमारीके रसमें स्करल करें स्वल्प ग्रहणीकपाटो रसः तथा सुखाकर आतशी शीशी में डालकर बालुका- प्र. सं. १६०२ "ग्रहणी कपाटो रसः” देखिये स्त्रमें (१२ पहर ) पावें । तदनन्तर यन्त्रके (८३८२) स्वल्पचन्द्रोदयमकरध्वजः स्वांगशीतल होने पर शीशीके गले में लगे हुवे (मै. र. । वाजीकरणा.) स्सको शोशी तोड़ कर निकाल लें ( शांशी को जातीफन लाच रं मरिचं तथा । स्लीमें स्वर्णभस्म मिलेगी उसे पृथक रक्खें ) प्रत्येक बोलकं दत्त्वा मुवर्णस्य च मापकप ।। इसके सेवनसे समस्त रोगों का नाश और धातु, अण्डनं पापपाना सर्वतुरावेघरम् । क्ल, अग्नि, आयु, मेधा, कान्ति और काम शक्ति । मलतो मर्दयेन् सल्ले द्विमुञां तु वटीं चरेत् ।। की वृद्धि होती है। यह अत्यन्त रसायन और एष चन्द्रोदयो नाम रसो वाजीकरः परः। हन्ति रोमानशेषांथ क्लवीर्याशिवर्दनः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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