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मित्रपकरणम् ]
पञ्चमो भागः
४२५
जायफल, लौंग, कपर और काली मिर्चका
स्वल्पमृगाङ्करसः चूर्ण १-१ तोला, (५-५ माशे) तथा स्वर्णभम्म ।
(र. चं. ; रसे. सा. सं. ; धन्व. ; र. रा. और कस्तूरी 1-21 माशा एवं रससिन्दूर सबके
सु. । राजय.) बराबर लेकर सबको एकत्र मिलाकर (पानके रसमें) सरल करके २-२ रत्तीको गोलियां बनावें।
प्र. सं. ५६३९ "मृगांकरसः” (७) देखिये। यह रस अत्यन्त वाजीकरण; क्ल, वीर्य और स्वल्पवडवानलरस: अग्निवर्दक तथा समस्त रोग नाशक है।
( रसे. सा. सं. । ज्वरा.) स्वल्दावकरसः
प्र. सं. ६९५६ “वडवानलरसः ( स्वल्प) “ महागावकरम ” देखिये
। (११)" देखिये। इति सकारादिरसपकरणम्
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अथ सकारादिमिश्रप्रकरणम्
(८३८३) सक्तुयोगः
(८३८४) सोचनयोगाः (वै. म. र. ! पट.२)
(धन्व. । वाजीकरणा.) पक्वेन दाडियफलस्वरसेन वाऽपि • मोचरससूक्ष्मचूर्ण क्षिप्तं योनौ स्थितं प्रहरम् ।
सक्तून पिकेत प्रवलपित्तमवज्वः । शतवारं मूताया अपि योनिः मूक्ष्मरन्ध्रा स्यात् ।। वदन् पडामृतमम्नु पिवेन सिताढयं बब्बूलकुसुमं लोभ्रं दाडिमीमूलवल्कलम् । तृड्दाइनूर्तिशमनाय च दीपनाय ॥ चूर्णीकृत्य क्षिपेयोनौ योनिसङ्कोचनं परम् ॥
तोत्र पित्तज चर में दाह, तृषा और चरका माजूफलं च त्रिफला खदिरोन्मत्तनी तथा । वेग कम करनेके लिये पके हुवे अनारके रसमें पटपूतं च सौराष्ट्री पूगं चैव समं समम् ॥ (जौका) सत मिला कर पोना चाहिये अथवा षडंग जलेन गुटिकां कृत्वा योनौ स्थाप्या घटी द्वयम्॥ क्वाथ (नागरमोथा, पित्त पापड़ा, सस, लाल चन्दन, (१) मोचरसके बारीक चूर्णको योनिमें छिड़सुगन्धवाला, सोंठ-इनका समान माग मिलित मोटा कनेसे १ पहरमें ही सौ बारकी प्रसूता स्त्रीकी योनि चूर्ण ११ तोला लेकर १ सेर पानीर्म पकाकर | भी सूक्ष्मछिद्र वाली हो जाती है। आषासेर रहे हुवे क्वाथ ) में मिश्री मिलाकर पीना । (२) बबूलके फूल, लोध, और अनारकी जड़की चाहिये। ये दोनों प्रशेम अग्रिको मी दीप्त करते हैं। । छाल समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । इसे (पोट
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