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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [सकारादि शराव-सम्पुटमें बन्द करके पुट दें। इसी प्रकार | (८३६४) स्वणेमारणम् (१८) ३ पुट देनेसे स्वर्णकी भस्म हो जाती है । इस । ( र. रा. सु. ; र. चं.) भस्ममें ( समान भाग ) हिंगुल मिला कर (नीबूके रसमें घोट कर) पुनः पुट दें । इसी प्रकार हिंगुल सूतस्य द्विगुणं गन्धमम्लेन कृतकज्जलिम् । के साथ ३ पुट देनेसे स्वर्णके साथ मिलाया हुवा द्वयो समीकृतं स्वर्ण सम्यगम्लेन मर्दयेत् ।। सीसा नष्ट हो जाता है । शरावसम्पुटान्तस्थमध ऊद्ध व सैन्धवम् । (८३६२) स्वर्णमारणम् (१६) - | अष्टयामाद्भवेद्भस्म सर्वयोगेषु योजयेत् ॥ । . (रसे. चि. म. । अ. ६ ) १ भाग शुद्ध पारद और २ भाग शुद्ध गंधकस्वर्णमावर्त्य तोलैकं मापैकं शुद्धनागकम् ।। की कज्जली बनावें और उसे ३ भाग स्वर्णक्षिप्त्वा चाम्लेन सञ्चूर्ण्य तत्तुल्यौ गन्धमासिकौ ॥ पत्रोंमें मिला कर नीबूके रसमें स्वरल करें तथा अम्लेन मर्दयेद्यामं रुद्ध्वा लघुपुटे पचेत् ।। गोला बनाकर ऊपर नीचे सेंधानमकका चूर्ण बिछागन्धः पुनः पुनर्देयो म्रियते दशभिः पुरैः ।। कर शराव-सम्पुटमें बन्द करें । उसे ८ पहर तक १ तोला स्वर्णको पिघलाकर उसमें १ माशा पकानेसे सुवर्णकी भस्म हो जाती है । शुद्ध सीसेका चूर्ण डालकर नीबूके रसमें घोटें फिर (८३६५) स्वर्णमारणम् (१९) उसमें ११-१। तोला शुद्ध गंधक और स्वर्ण माक्षि (र. रा. सु.) कका चूर्ण मिला कर पुन: नीबूके रसमें १ पहर घोटें और फिर उसका गोला बनाकर शराव- सुशुद्ध पारदं दत्वा कुर्याद्यत्नेन पिष्टिकाम् । सम्पुटमें बन्द करके लघुपुटमें फंक दें। इसी प्रकार दत्वोद्धोधो नागचूणे पुटेन म्रियते ध्रुवम् ॥ हरबार १। तोला गं कके साथ खरल करके १० शुद्ध पारद और सोनेके वर्क समान भाग ले पुट देनेसे स्वर्णकी भस्म हो जाती है । कर दोनोंको एकत्र मिला कर खरल करें । जब (८३६३) स्वर्णमारणम् (१७) | दोनों मिलकर पिटी (पिष्टिका) हो जाय तो उसे, ( र. रा. सु.) ऊपर नीचे सीसेका चूर्ण रख कर शरावसम्पुटमें सौवीरमञ्जनं पिष्वा मार्कवस्वरसै दिहेत । बन्द करें और पुट लगा दें। इस विधिसे स्वर्ण जातरूपस्य पत्राणि शरावे सम्पुटे पुटेत् ॥ अवश्य मर जाता है। गजाख्येन पुटेनैव सुवर्ण याति भस्मताम् ॥ (८३६६) स्वर्णमारणम् (२०) १ भाग काले सुरमेको भंगरके रसमें खरल करके उसका १ भाग सोनेके पत्रों पर लेप कर दें और (र. र. स. । पू. अ. ५; र. प्र. सु. । अ. ४) उन्हें शराव-सम्पुटमें बन्द करके गजपुट में फंक कृत्वाकाटकवेध्यानि स्वर्णपत्राणि लेपयेत् । दें। इस विधिसे स्वर्णकी भस्म हो जाती है। लुङ्गाम्बुभस्ममूतेन म्रियते दशभिः पुरैः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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