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रसमकरणम् ]
पञ्चमो भागः
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स्वर्णके कण्टकवेधी पत्र बना कर उन पर | आमले का चूर्ण तथा स्वर्ण एकत्र मिला कर पारद-भस्मको नीबूके रसमें घोट कर लेप करें शहदके साथ सेवन करने से अरिष्ट लक्षणयुक्त और शराव-सम्पुट में बन्द करके पुट लगा दें। व्यक्ति की आयु भी स्थिर हो जाती है। इसी प्रकार दस पुट देनेसे स्वर्णकी भस्म हो
(८३७०) स्वर्णयोगः (४) जाती है।
(८३६७) स्वर्णयोगः (१) अपक्वं हेम सघृष्टं शिलायां जलयोगतः ।
( आ. वे. प्र. । अ. ११) द्रवरूपं तु तत्पेयं मधुना गुणदायकम् ।। मेघाकामस्तु वचया श्रीकामः पदकेसरैः। यद्वा च वरखाख्यं तु स्वर्णपत्रं विचूर्णितम् । शङ्खपुष्प्या वयोर्थी च विदार्या च प्रजार्थकः ॥ मधुना सङ्ग्रहीतं च सयो हन्ति विषादिकम् ॥
स्वर्णको बचके साथ सेवन करने से मेधा की; कच्च स्वर्णको पानीके साथ पत्थर पर घिसकर कमल-केसरके साथ सेवन करने से कान्ति की;
शहद मिला कर पीने से अथवा सोनेके वरोंको शंखपुष्पी के साथ सेवन करने से आयु की, और
शहदमें घोट कर खाने से विषादि शीघ्र ही नष्ट विदारीकन्द के साथ सेवन करने से सन्तानकी वृद्धि हो जाता है। होती है। (८३६८) स्वर्णयोगः (२)
(८३७१) स्वर्णयोगः (५) (र. चं. । राजयक्ष्मा. ; वै. मृ.)
( यो. त. । त. ३८) नवनीतसीतामधुपयुक्तो
ब्राह्मीरसः स्यात्सवचः सकुष्टः वरखो हेमभवः क्षयं क्षिणोति ।
__ सशङ्खपुष्पः ससुवर्ण चूर्णः । वितयः प्रभवेदयं प्रयोगो
उन्मादिनामुन्मदमानसानायदि तन्मे शपथः सदाशिवस्य ॥
मपस्मृतौ भूतहतात्मनां हि ॥ सोनेके वर्क, मक्खन, मिश्री और शहदमें
नस्येजने पानविधौ न शस्तो मिलाकर सेवन करने से क्षय रोग अवश्य नष्ट हो
ब्राह्मीरसोऽयं सवचादि चूर्णः ।। जाता है । मैं शिवकी शपथ खाकर कहता हूं कि ।
ब्राह्मीके रसमें बच, कूठ, शंखपुष्पी और यह प्रयोग सत्य है। (८३६९) स्वर्णयोगः (३)
स्वर्णका चूर्ण मिला कर सेवन करने से उन्माद, (सु. सं. । चि. स्था. अ. २८ ; आ. वे.
चित्तभ्रम, अपस्मार और भूतवाधा का नाश
| होता है। मध्वामलकचूर्णानि सुवर्णमिति च त्रयम् । | इस प्रयोगको नस्य और अंजन द्वारा भी माश्यारिष्ट गृहीतोऽपि मुच्यते माणसंशयात् ।। प्रयुक्त करना चाहिये ।
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