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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः ४१९ (८३५८) स्वर्णमारणम् (१२) ४ भाग स्वर्ण-पत्रों पर १ भाग पारद ( यो. र. ; शा. घ. ; र. रा. सु.) । भस्मको नीबूके रस आदिमें खरल करके लेप करें पारावतमलैलिम्पेदथवा कुक्कुटोद्भवैः । और शराव-सम्पुट में बन्द करके पुट दें । इसी हेमपत्राणि तेषां च प्रदद्यादन्तरान्तरम् । प्रकार ( पारद भस्मके योगसे ) ८ पुट देनेसे गन्धचूर्ण समं धृत्वा शरावयुगसम्पुटे । स्वर्णकी भस्म हो जाती है। प्रदद्यात्कुक्कुटपुटं पञ्चभिगोमयोपलैः ॥ इसे २ रत्ती मात्रानुसार त्रिकुटेके चूर्ण और एवं नवपुटं दद्यादशमं च महापुटम् । घीके साथ सेवन करनेसे क्षय, अग्निमांद्य, श्वास, त्रिंशद्वनोपलैर्दयं जायते हेमभस्म तु ॥ | कास, अरुचि, पाण्डु, विषविकार, गरविष और ग्रहणी रोगादिका नाश तथा ओज और बलकी स्वर्णपत्रों पर कबूतर अथवा मुरगेकी विष्टा वृद्धि होती है। का ( पानीमें पीसकर ) लेप कर दें और फिर उन्हें नीचे ऊपर समान भाग गंधक दे कर शराव (८३६०) स्वर्णमारणम् (१४) सम्पुटमें बन्द करें और कुक्कुट पुटमें ५ बनकण्डों (र. र. स. । पू. अ. ५) ( अरने उपलों ) में फूंक दें। इसी प्रकार गंधक द्रुते विनिक्षिपेत्स्वर्णे लोहमानं मृतं रसम् । साथ ९ पुट दें और फिर दसर्वी पुट ३० उपलों विचूर्ण्य लुङ्गतोयेन दरदेन समन्वितम् ॥ (कण्डों) की दें। इस विधिसे स्वर्णकी भस्म हो जायते कुङ्कुमच्छायं स्वर्ण द्वादशभिः पुटैः॥ जाती है। १ भाग स्वर्णको पिघलाकर उसमें १ भाग ( १ तोला सोनेके वों के लिये ५ कण्डे | पारदभस्म मिलावें और फिर उसमें १ भाग शुद्ध लेने चाहिये। स्वर्ण अधिक हो तो कण्डे भी हिंगुल मिलाकर नीबूके रसमें खरल करके शरावअधिक लें।) सम्पुट में बन्द करें और पुट लगा दें । इसी विधिसे १२ पुट देनेसे स्वर्णकी केसरके समान (८३५९) स्वर्णमारणम् (१३) । रंगवाली भस्म हो जाती है । (र. र. स. । पू. अ. ५) हेम्नः पादं मृतं मूतं पिष्टमम्लेन केनचित् । | (८३६१) स्वर्णमारणम् (१५) पत्रे लिप्त्वा पुरैः पच्यादष्टभिर्मियते ध्रुवम् ॥ ( रसे. वि. म. । अ. ६) एतद्भस्म सुवर्णनं कटुघृतोपेतं द्विगुञ्जोन्मितम् । | हेमपत्राणि मूक्ष्माणि जम्भाम्भो नागभस्मतः। लीढं हन्ति नृणां क्षयात्रि | लेपतः पुटयोगेन त्रिवारं भस्मतां नयेत् ॥ सदनं श्वासं च कासारुचिम् । पुनः पुटेत् त्रिवारं तत् म्लेच्छतो नागहान ये॥ ओजोधातुविवर्धनं बलकरं पावामयध्वंसनम्। (१६ भाग ) स्वर्ण पत्रों पर नीबूके रसमें पथ्यं सर्व वेषापहं गरहरं दुष्टग्रहण्यादिनुत् ॥ । घुटी हुई (१ भाग) सीसेकी भस्मका लेप करके For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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