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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि स्वर्णको पिघला कर उसमें उसके बराबर स्वर्ण-पत्र और सीसेकी भस्म समान भाग ले लोहपर्पटिकाबद्ध पारद भस्म डाल दें । इससे कर सीसा भस्मको नीबूके रेसमें खरल करके स्वर्ण भस्मके समान हो जायगा । तत्पश्चात् उसमें स्वर्ण-पत्रों पर लेप करें और उन्हें शराव सम्पुटमें शिंगरफ ( हिंगुल ) मिला कर बिजौ रके रसमें १ बन्द करके गजपुटमें फेंक दें। इस प्रकार ३ पुट दिन खरल करें और शरावसम्पुटमें बन्द करके देनेसे स्वर्णकी भस्म हो जाती है। (लघु) पुटमें फूंक दें । इसी प्रकार दस पुट देनेसे (८३५७) स्वर्णमारणम् (११) सिन्दूरके समान लाल भस्म हो जाती है । ( भा. प्र. । पू. खं. १ ; रसे. सा. सं.; र. चं.; (८३५४) स्वर्णमारणम् (८) वृ. यो. त.। त. ४१ ; शा. ध. ; आ. वे. (र. चं.) प्र.। अ, ११: रसे. चि. म. | अ.३६) स्वर्णाधं पारदं दत्वा कुर्यात्नेन पिष्टिकाम् ।। | स्वर्णाच द्विगुणं मूतमम्लेन सह मर्दयेत् । दत्वोर्धाधो नागचूर्ण पुटनान्म्रियते ध्रुवम् ॥ तद्गोलकसम गन्धं निदध्यादधरोसरम् ॥ २ भाग स्वर्णमें १ भाग पारद मिला कर अच्छी तरह खरल करें और उस पिष्टीको, ऊपर गोलकं च ततो रुन्ध्याच्छरावदृढसम्पुटे । नीचे सीसेका चूर्ण बिछा कर, शरावसम्पुट में त्रिंशद्वनोपलैर्दधात्पुटान्येवं चतुर्दश ॥ बन्द करें तथा (लघु) पुटमें फूक दें। इस प्रकार निरुत्थं जायते भस्म गन्धो देयः पुनः पुनः ।। (कई) पुट देनेसे स्वर्ण मर जाता है। १ भाग स्वर्ण-पत्र, २ भाग शुद्ध पारदx (८३५५) स्वर्णमारणम् (९) और ३ भाग शुद्ध गंधक ले कर प्रथम पारद और (रसे. सा. सं. ; र. रा. सु.) स्वर्णको पक्के खरल में डाल कर थोड़ा थोड़ा नीबूका माक्षिकं नागचूर्णश्च पिष्ट रर्करसेन च । रस डालते हुवे खरल करें और जब दानों अच्छी हेमपत्रं पुटेनैव म्रियते क्षणमात्रतः ॥ तरह मिल जाएं तो सबका एक गोला बना लें। स्वर्ण माक्षिक और सीमेका चूर्ण १-१ तदनन्तर एक मिट्टीकी प्यालेमें आधा गंधकका भाग ले कर दोनोंको आकके पत्तोंके रस ( या । चूर्ण बिछा कर उस पर उपरोक्त गोला रवखें और अर्क दुग्ध ) में खरल करें और फिर समान भाग उसके ऊपर शेष गंधकका चूर्ण डाल कर गोलेको स्वर्ण-पत्रों पर उसका लेप करके उन्हें शराव- उससे आच्छादित कर दें । तत्पश्चात् उस पर सम्पुटमें बन्द करके पुट लगा दें । इस विधिसे | दूसरा प्याला ढक कर सन्धिको बन्द करके सम्पुट शोघ ही स्वर्णकी भस्म हो जाती है। बनावें और उस पर ३-४ कपरमिट्टी दे कर सुखा (८३५६) स्वर्णमारणम् (१०). लें । इस सम्पुटको ३० बनकण्डोंकी आगमें फूंके। (यो. र.) इसी प्रकार बार बार गंधक डालकर १४ पुट देनेसे स्वर्णपत्रसमं नागभस्म निम्बूविलेपितम् ।। सोनेकी निरुत्थ यस्म हो जाती है। त्रिवारं वै गजपुटे सुवर्ण भस्मतां व्रजेत् ॥ xपाठान्तरके अनुसार पारद स्वर्ण के बराबर. For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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