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भारत-भैषज्य-रस्नाकरः
[सकारादि
हैं; ६० दिनमें शरीरके समस्त मल नष्ट हो जाते ] दौर्मनस्य देख:कर विश्वास दिलानेके लिये इस हैं और ८० दिन बीत जाने पर दांत भी गिर | योगकी रचना की गई है। जाते हैं । इस प्रकार पुरातन नखादि नष्ट हो कर । यह रस मनुष्यको देवसदृश बना देता है। ३ मासमें नवीन केश और दृढ़ दांत निकल | (८२८८) सूर्यावर्तरसः (१) आते हैं ।
(शा. सं । खं. २ अ. १२ ; र. र. ; र. शरीर नवीन हो जाता है। रूप कामदेवके
का. धे. ; धन्व. ; रसे. सा. सं.। हिक्का श्वासा. ; समान सुन्दर; शरीरावयव दृढ़ और बलवान तथा
र. प्र. सु. । अ. ८; र. रे. स. । उ. अ. १३; गति घोड़ेके समान तीव्र हो जाती है । भूख
र. चं. । श्वासा; रसे. चि. म. । अ. ९; र. रा. अत्यधिक बढ़ जाती है। कामशक्ति इतनी तीव्र
सु. ; वृ. नि. र. ; वै. र. । श्वासा. ) हो जाती है कि मनुष्य १००-१०० स्त्रियोंसे सूताओं गन्धको म? यामैकं कन्यकाद्रवैः । समागम कर सकता है । बाल भौं रेंके समान काले द्वयोस्तुल्यं ताम्रपत्रं पूर्वकल्केन लेपयेत् ।। और धुंघराले हो जाते हैं। बाहु विशाल और दिनैकं स्थालिकायन्त्रे पक्वमादाय चूर्णयेत् । छाती दृढ़ तथा शोभायमान हो जाती है। शरीर | सूर्यावर्तो रसो होष द्विगुञ्जः श्वासजिद्भवेत् ।। उन्नत और नेत्र विशाल हो जाते हैं। ___ शुद्ध पारद २ भाग और शुद्ध गन्धक १
भाग ले कर कज्जली बनावें और उसे १ पहर औषध खाने के पश्चात् संभालुके पत्तोंका रस
घृतकुमारीके रसमें खरल करके ३ भाग शुद्ध पीना चाहिये । इस प्रकार दिनमें ३ बार यह
ताम्रके पत्रों पर लेप कर दें । इन्हें हांडीमें बन्द औषध खानी चाहिये । औषध भक्षणके थोड़ी देर
करके एक दिन पाक करें और स्वांगशीतल होने बाद पान खाना चाहिये।
पर पीस कर सुरक्षित रक्खें । इसके सेवन कालमें सुगन्धियोंसे भरपूर, ___मात्रा-२ रत्ती। निर्मल और सुखद विस्तृत शैया पर आराम करना ___ यह रस श्वासको नष्ट करता है । चाहिये । गीत, संगीत और रामायण सुनना तथा ( यदि ताम्र कच्चा रह जाए तो पुनः इसी नाटकादि देखना चाहिये । सुगन्धयुक्त पुष्ोकी | प्रकार पकाना चाहिये । ) माला पहिरनी चाहिये । सुन्दर रमणियोंके साथ सूर्यावर्तरसः (२) प्रसन्नता पूर्वक दिन व्यतीत करना चाहिये परन्तु (र. का. धे. । कुष्टा. ; र. रा. मु. । कुष्ठा.) मनमें विकार न आने देना चाहिये।
" सूर्यकान्त रसः" प्र. सं. ८२७६ देखिये । इस पर अपथ्य कदापि न सेवन करना *र. र. स. में शुद्ध ताम्रके स्थानमें ताम्र भस्म चाहिये। लोगोंकी शास्त्रोंमें अनिष्ठा और सुकर्ममें | लिखी है।
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