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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्सप्रकरणम् पश्चमो भागः चत्वारिंशदिनेऽतीते तत्केशाः प्रक्षरन्ति च। काव्योऽवश्यकर्त्तव्यो निश्चित्य मनसि धुवम् । एवं पण्ठिदिने क्रान्ते मला नाशं व्रजन्ति च ॥ मोहमुत्सृज्य तेन स्यादीप्सितं सफलं सदा ।। अशीतिदिवसस्यान्ते तस्य दन्ताः पतन्ति धै। सूर्यसिदो रसो ह्येष कुर्यान्नृन्देवसनिभान् ॥ एवं स्वयं पाश्यमानं रसायनं रसेश्वरम् ॥ १ सेर शुद्ध पारदको एक एक दिन गिलोय, मासत्रये समायान्ति नन्दाः केशा न संशयः। भंगरे, घृतकुमारी, कटेली, त्रिफला, मकोय, केला, दृढा दन्ताश्च जायन्ते नवीनाश्च पुनर्नवाः ॥ असगन्ध, मूसली और पुनर्नयाके रसमें खरल करें पुनर्नववपुर्भूत्वा द्वितीयो मीनकेतनः । और फिर उसमें १-१ सेर गेरु और खिड़िया मिट्टी तथा २ सेर सेंधा नमकका चूर्ण मिला कर सिद्धमण्डलसिद्धाको ब्रह्मायुः कालपारगः ॥ घी कुमारके रसमें इतना खरल करें कि पारद हढाङ्गो बलवान्सौम्यो हरिवेगो दृढेन्द्रियः । निरामयो महोत्साहो महाशी च मनोहरः ॥ अदृश्य हो जाए । कमसे कम ३ दिन तक खरल करना चाहिये । तत्पश्चात् उसे कपडमिट्टी की हुई वनितानां शतं गच्छेत्पुत्राणां शतमाप्नुयात् । आतशी शीशीमें भर कर उर का मुख बन्द कर दें कालभ्रमरसङ्काशाः केशाः स्युर्गुच्छरूपिणः ॥ और उसे १३ दिन (बालुकायन्त्रमें ) पकावें । विशालबाहुशोभी स्यादृढोरःस्थलशोभनः । इसके पश्चात् जब यन्त्र स्वांगशीतल हो जाय कपाटमतिमं प्रौदं हृदयं स्त्रीमनोहरम् ॥ तो रसको निकाल कर सुरक्षित रक्खें । अत्युन्नतवपुर्यष्टिविशालनयनाम्बुजः। इसे सेवन करनेसे पूर्व रस (पारद) और निर्गुण्डिकापत्ररसं त्रिकालं वानु पाययेत् ॥ गुरु जनोंका पूजन करना चाहिये। इसके सेवन औषधस्य क्षणं स्थित्वा काले ताम्बूलचर्वणम् । | कालमें क्रोध, मद, मात्सर्य, मान और अहङ्कारका कर्पूरकुसुमामोदे निर्मले विनिवेशयेत् ॥ त्याग कर देना चाहिये । अम्ल पदार्थोसे अनल्पे सुखदे तल्पे निर्मलास्तरणैयुते । परहेज करना चाहिये। ब्रह्मचर्य पालन करना गीतसङ्गीतशास्त्रीयं रामायणपरायणः ॥ आवश्यक है तथा यथा शक्ति दान देना और नाटक हाटकं चापि शृणोति च निरीक्षते ।। वैद्यको सन्तुष्ट रखना चाहिये। महासुगन्धसंयुक्तं हारं कुमुमसंयुतम् ॥ मात्रा--आधी रत्तीसे प्रारम्भ करके थोड़ी मनोऽभिरामा रामाश्च निर्विकाराः सदोत्सुकाः। थोड़ी मात्रा बढ़ाते हुवे ९ रत्ती तक कर देनी ताभिः सह मुखं सेव्यः कामोऽनाकुलचेतमा ॥ चाहिये । अनल्पस्यास्य कल्पस्य सेवनं कुरुतेऽनिशम् । पथ्य-दूध भात, मूंग, पका हुवा दूध, घी. अपथ्यं न च कर्तव्यं पथ्ये स्थेयं सदा बुधैः ॥ खांड, शहदकी खांड । अनिष्ठां देहिनां शास्त्रे दौमनस्यं मुकर्मणि। इसे सेवन करनेसे २१ दिन पश्चात् नख दृष्ट्वा बुधैरयं प्रोक्तो योगो विश्वासहेतवे ॥ गिर जाते हैं; ४० दिन पश्चात् बाल गिरने लगते For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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