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प्रकरणं ]
(८२५७) सूतभस्मयोग: ( ४ ) ( र. चं. । शीतपित्ता. ) मानीगुडसम्मिश्रं सूतभस्प द्विवलकम । पित्तं निहन्त्याशु कटुतैलविलेपनम् || अजवायन के चूर्ण और गुड़के साथ ६ रती पारद - भस्म मिलाकर सेवन करने से शीतपित्त ( पित्ती ) का शीघ्र नाश होता है । शीतपित्त में कड़वे तेलका लेप भी करना चाहिये ।
पञ्चमो भागः
( व्यवहारिक मात्रा - १ - २ रत्ती | (८२५८) सूतभस्मयोगः (५) ( र. च.; र. रा. सु. | वातरोगा. ) शङ्खपुष्पी वचा ब्राह्मी कुठमेलारसैः सह । सूतभस्म प्रयोगोऽयं रतिकाद्वयमानतः ॥ सर्वापस्मारनाशाय महादेवेन भाषितः ॥
शंखपुष्पी, बच, ब्राह्मी, कूठ और इलायची समान भाग ले कर काथ बनावें ।
इस का के साथ २ रत्ती पारद भस्म सेवन करने से समस्त प्रकारके अपस्मार नष्ट होते हैं ।
(८२५९) सूतभस्मयोग : ( ६ ) ( रसे. सा. सं. 1 अरोचका. ) समरुचिघ्नं स्यातिन्तिडीकगुडोपणम् । मृद्वीका जीरकं कृष्णा मातुलुङ्गाम्लवेतसम् ॥
तिन्तड़ीक (इमली), गुड़, काली मिर्चका चूर्ण, मुनक्का, जीरेका चूर्ण और पीपलका चूर्ण तथा अम्लवेतका चूर्ण १-१ भाग ले कर सबको एकत्र
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मिलाकर बारीक पीसें और फिर उसमें १ भाग पारद - भस्म ( या रससिन्दूर) मिलाकर अच्छी तरह. खरल करें ।
इसे बिजौरे नीबू के रस में मिलाकर सेवन करने से अरुचिका नाश होता है ।
( मात्रा - १ माशा | )
(८२६०) सूतराजः
(र. रा. सु. ; २. चं. । ग्रहण्य. ) रसगन्धाकाणां च भागानेकद्विकाष्टकान् । समय सर्वरोगेषु युञ्ज्याद्वल्लचतुष्टयम् ॥ ग्रहगुल्माशमेहधातुगतज्वरान् । निहत मृतराजोऽयं मण्डलस्य च सेवनात् ॥
शुद्ध पारद १ भाग, शुद्र गंधक २ भाग और अभ्रक - भस्म ८ भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर खरल करें |
मात्रा- - १॥ माशा ( व्यवहारिक मात्रा १ रत्ती । )
इसके सेवन से संग्रहणी, क्षय, गुल्म, अर्श, प्रमेह, और धातुगतज्वरका ४० दिनमें नाश हो जाता है।
(८२६१) सूतशेखररसः (१)
( र. च.; बृ. नि. र. ; यो. र. । अम्लपित्ता. ) शुद्धं मृतं मृतं स्वर्ण टङ्कणं वत्सनागकम् । व्योषमुन्मत्तबीजं च गन्धकं ताम्र भस्मकम् || चातुर्जातं शङ्खभस्म बिल्वमज्जा कचोरकम् । सर्व समं क्षिपेत्खल्वे मधे भृङ्गरसैर्दिनम् ॥
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