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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि - - - जिससे रोज उसके ऊपर आग जलती रहे । सात रसमें मिलाकर उसे खिला भी देनी चाहिये जिससे दिन पश्चात् हाण्डीको निकाल कर औषधको | वह पूर्णतः निरोग हो जायगा । निकाल लें और बारीक चूर्ण करके रक्खे । । पथ्य-दही भात । जब रोगी सन्निपात आदिसे मूर्छित हो तो (८२५४) सूतभस्मयोगः (१) उसके सिर पर ( ब्रह्मरन्ध्र में ) छुरेसे त्वचाको जरा (र. का. घे. । मूत्राघाता.) खुरच कर ३ रत्ती यह रस कांजीमें पीसकर मल लवणक्षारसंयुक्तं मृतकं यः पिचेन्नरः । दें। इससे भयंकरसे भयंकर मूर्छा तुरन्त नष्ट हो | तस्य नश्यन्ति वेगेन मूत्राघातास्त्रयोदश ॥ जाती है। __सेंधा नमक और जवाखार (१-१ माशा) (८२५३) सूचिकाभरणरसः (४) तथा पारद भस्म १ रत्ती लेकर तीनोंको एकत्र (र. रा. सु. । चरा.) मिलाकर सेवन करनेसे १३ प्रकारके मूत्रकृच्छ । शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। हृद्धात्री दरदं तुल्यं गरलेन सुमर्दितम् । मुद्गप्रमाणा वटिका नाभिहत्तालुदेशके ॥ (८२५५) सूतभस्मयोगः (२) कुशेन चर्मनिर्भिद्यविघृष्याकवारिणा । (र. का. धे. । मूत्रकृच्छ्रा.) रसप्रभावमात्रेण नेत्रमुद्धाटयेक्षणात् ॥ | रसवल्लं यवक्षारं सितातक्रयुतं पिबेत् । सावधानो भवत्येव निश्चैतन्यं प्रवर्तते । मूत्रकृच्छाणि सर्वाणि लभन्ते नाशतां जवात् ।। ततस्त्वेकां मुवटिकां दद्यादाकवारिणा॥ तक्रमें मिश्री और (१ माशा) यवक्षार तथा सर्वथासुखमामोति भोजयेद्दधिभक्तकम् । | २ रत्ती पारद-भस्म मिलाकर सेवन करनेसे समस्त सूचिकाभरणो नामरसः परमदुर्लभः ॥ प्रकार के मूत्रकृ शोध ही नष्ट हो जाते हैं। दृद्वात्री (हियावली) और शुद्र हिंगुल (८२५६) सूतभस्मयोगः (३) समान भाग लेकर दोनोंको एकत्र मिलाकर सर्पविषसे (र. चं. । विसा. ) खरल करें और मूंगके बराबर गोलियां बना लें। । गुडूचीनिम्बजक्वाथैः खदिरेन्द्रयवाम्बुना । कर्पूरत्रिसुगन्धिभ्यां युक्तं सूतं द्विवल्लकम् ।। जब रोगी मूच्छित हो तो उसको नाभि, विस्फोटं त्वरितं हन्याद्वायुर्जलधरानिः ।। हृदय या तालु (खोपरी) पर कुशसे चर्ममें छेद | ६ रत्ती (व्य. मात्री १-२ रत्ती) पारद भस्मको करके उस स्थान पर इस रसकी १ गोली अदरकके कपूर, दालचीनी, इलायची और तेजपातके चूर्ण के रसमें घिसकर मल दें। साथ मिलाकर गिलोय, नीमकी छाल, खैरसार और इसका प्रभाव होते ही गेगी तुरन्त चेतमें आकर इन्द्रजौके काथके साथ सेवन करनेसे विस्फोटकका आंखें खोल देता है। उस समय १ गोली अदरकके शीघ्र ही नाश होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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