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भारत-भैषज्य-लाकरः
[ सकारादि
गुभायात्रां वटि कृत्वा द्विगुझे मधुसर्पिषा। (८२६२) सूतादिगुः का भक्षयेदम्लपित्तनो वान्तिशूलामयापहः ॥ (यो. र. ; र. चं. ; र. रा. सु.। चका. ; वृ. पश्चगुल्मान्पकासान् ग्रहण्यामयनाशनः।
यो. त. । त. ८२, क्दिोषोत्यातिसारनः श्वासमन्दाग्निनाशनः ॥ उग्रहिकामुदावत देहयाप्यगदापहः।
मतगन्धाभ्र मगधाम्लिका मरिचसैन्धवैः । मण्डलाबात्र सन्देहः सर्वरोगहरः परः॥
गुटिकाऽरोचकहरी जिहावदनादिकृत् ॥ राजयक्ष्महरः साक्षाद्रसोऽयं मूतशेखरः॥ ___शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म, शुद्ध पारद, स्वर्ण-भस्म, सुहागेको खील,
पीपलका चूर्ण, इमलोके फल, मिर्चका चूर्ण और शुद्ध बछनाग, अभ्रक-भस्म, सोंठ, मिर्च, पोपल,
सेंधा नमकका चूर्ण समान भाग ले कर प्रथम पारे धतूरेके शुद्र बोज, शुद्ध गंधक, ताम्र-भ्रस्म,
गंधककी कजली बनावें और फिर उसमें अन्य दालचीनी, तेजपात, इलायची, नागकेसर, शंख-भस्म,
औषधोंका चूर्ण तथा पानी के साथ पत्थर पर पीसी बेलकी गिरी और कचूर समान भाग ले कर प्रथम |
हुई इमली मिलाकर अच्छी तरह सरल करें और पारे-गंवककी कजली बनावें और फिर उसमें
(३-३ रत्तोको ) गोलियां बना लें। अन्य औषधोंका बारीक चूर्ण मिलाकर, १ दिन
इनके सेवनसे अरुचि नष्ट होती तथा जिल्हा भंगरेके रसमें खरल करके २-२ रत्तीकी गोलियां | और मुख शुद्ध होता है। बना लें।
(सुबह शाम १-१ गोली मुंहमें रखकर रस ____इनमेंसे १-१ गोली शहद और घीके साथ चूसना चाहिये। ४० दिन तक खानेसे अम्लपित्त, वमन, शूल, ५ (८२६३) सूतादियोगः (१) प्रकारके गुल्म, ५ प्रकारको खांसी, संग्रहणी,
(र. रा. सु. । मदात्यया.) त्रिदोषज अतिसार, स्वास, अग्निमांद्य, उप हिक्का
पूरक हिकरुचकं सचव्यविश्वदीप्यकम् । ( हिचको), उदावर्त और राजयक्ष्माका अवस्य नाश हो जाता है।
चूर्ण समूतं मयेन पीतं पानात्ययं जयेत् ॥
बिजौरे नीबूको मजा, हींग, काला नमक, सूतशेखररसः (२) प्र. सं. ६०३३ "रक्तसूतशेखररसः"देखिये।
र चन्य, सोंठ, और अजवायन इनका चूर्ण तथा सूतशेखररसः (३)
रससिन्दूर १-१ भाग ले कर सबको एकत्र मिला (सूर्यशेखररसः)
कर खरल करें। (वृ. नि.र. । कफपित्तवरा. ; र. चि. । स्त. ११) इसे मयके साथ सेवन करनेसे पानात्ययका
प्र. सं. ७६३८ “शीतारि रसः (१)" नाश होता है। देखिये।
(माग-१ माशा ।)
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