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भारत-भैषज्य रत्नाकरः
काकड़ासिंगी, कुड़े की छाल, चेतकीहर, नागरमोथा, कचूर, चिरायता, भरंगी, हल्दी, कुटकी, पोखरमूल, चीतामूल, काली मिर्च, कटेली, बासा, आमला, देवदारु, बहेड़ा, चव, सोंठ, पीपल और कायफल समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
यह For मन्दोण करके पीने से कण्ठकुब्ज सन्निपात शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
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( ७२५९) शृङ्गयादिकाथ: ( ३ ) ( यो. र. ; वृ. नि. र. भा. प्र. वै. र . ) शृङ्गीभार्ग्यभयाजाजीकणा भूनिम्बपर्पटैः । देवदारुवचाकुष्ठयासकट्फलनागरैः ॥ सुस्तधान्याकतिक्ते न्द्रयवपाठाह रेणुभिः । हस्तिपिप्पल्यपामार्गपिप्पलीमूलचित्रकैः ॥ विशालारग्वधारिष्टशठीबाकुचिकाफलैः विडङ्गरजनीदावयवानीद्रयसंयुतैः ॥ anita: क्वायो डिबाईकरसान्वितः । अभिन्यास ज्वरं घोरं हन्ति तन्द्रां च तत्तणात् ॥ प्रमेहं कर्णशूलं च सभपातांस्त्रयोदश । rिai श्वासं च कासं च तथा सर्वानुपद्रवान् ॥
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काकड़ासिंगी, भरंगी, हर्र, जीरा, पीपल, चिरायता, पित्तपापड़ा, देवदारु, बच, कूठ, जवासा, कायफल, सेठ, नागरमोथा, धनिया, कुटकी, इन्द्रजौ, पाठा, रेणुका: गजपीपल, अपामार्ग (चिरचिटा ), पीपलामूल, चीता, इन्द्रायण, अमलतास, नीमकी छाल, कचूर, बाबचीके बीज, बायबिडंग, हल्दी, दारु हल्दी, अजवायन और भजमोद समान भाग लेकर काथ बनावें ।
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इसमें हींग और अदरक का रस मिला कर सेवन करने से घोर अभिन्यास ज्वर, तन्द्रा, प्रमेह, कर्ण शूल, १.३ प्रकारके सन्निपोत, हिक्का, स्वास और कास आदि उपद्रव शीघ्रही नष्ट हो जाते हैं।
(७२६०) शेफालिकाकाथः
(.ग. नि.. । बा. रो. २० ) terronics: arat मृमिपरिपाचितः । दुर्वारं गृध्रसीरोगं पीतमात्रः प्रणाशयेत् ॥
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संभालके पत्तोंका मन्दाभिपर बनाया हुवा क्वाथ कष्टसाध्य गृध्रसीको भी शीघ्र ही नष्ट कर देता हैं।
(७२६१) शेफालिकादिकाथः ( वृ. नि. र. । ऊरुस्तम्भा. ) शेफालिकादलक्वार्थं कणायुक्तं पिवेन्नरः । कफनं यच्च तत्समूरुस्तम्भे प्रयोजयेत् ॥
संभालुके पत्तोंक क्वाथमें पीपलका चूर्ण मिलाकर पीने से ऊरुस्तम्भ रोग नष्ट होता है । उरुस्तम्भ रोगमें अन्य कफघ्न उपाय भी करने चाहियें ।
(७२.६२) शोधन्यादिक्काथ:
( वृ. नि. र. । अतिसारा. ) atra पाठ। विडङ्गातिविपाधनाः । क्वथिता सोषणाः पीताः शोथातीसारनाशनाः ||
लाल पुनर्नवा (बिसखपरा ), इन्द्रजौ, पाठा, बायबिडंग, अतीस और नागरथा समान भाग कर क्वाथ बनावें ।
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