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कषायप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
इसमें काली मिर्चका चूर्ण मिलाकर पीनेसे द्राक्षा, खजूर, पियाल, (चिरौंजी), बेर, शोथातिसार नष्ट होता है।
| दाडिम, कठूमरका फल, फालसा, ईख, जो और (७२६३) शोथहरो दशको महाकषायः | | मुलैठो; ये दश ओषधियां श्रमनाशक हैं । (च. सं. । सू. अ.४.)
(७२६७) श्रीखण्डादि कषायः (१) . ___पाटलामिमन्यबिल्वश्योनाककाश्मर्यकण्टकारिकाचहतीशालपर्णीपृश्निपर्णी गोक्षुरका
(ग. नि. । ञ्चरा.) इति दशेमानि शोथहराणि भवन्ति ।
श्रीखण्डयष्टीमधुकाफजङ्घाः ___पाटला, अरणी, बेल, अरलु, खम्भारी, श्रीपर्णिकापपेटमुस्तद्राक्षाः । कटेली, बड़ी कटेली, शालपर्णी, पृष्टपर्णी, और खजूरकोशीरयुगान्विताश्च गोखरु; ये दश ओषधियां (दशमूल ) शोथ
पित्तवरे शर्करया कपायः॥ नाशक हैं।
___चन्दन, मुलैठी, काकजंघा, गंभारी, पित्तपा(७२६४) शोभाञ्जनादिकल्कः
पड़ा, नागरमोथा, द्राक्षा, खजूर और दो प्रकारको ( भा. प्र. । म. खं. २ विध्य. ; वृ. मा.) । खस समान भाग ले कर क्वाथ बनावें। शोभाअनकनिहो हिसैन्धवसंयुतः।
__ . इसमें खांड मिलाकर पीनेसे पित्त ज्वर नष्ट हन्त्यन्तर्विद्रधिं शीघ्रं पातः प्रातर्विशेषतः॥ |
होता है। सहजनेकी जड़के. रसमें होंग और सेंधानमक मिला कर सेवन करनेसे अन्तर्विदधि शीघही नष्ट -- (७२६८) श्रीखण्डादिकषाय: (२) हो जाती है।
( ग. नि. । कासा. १०) (७२६५) श्यामादिकषायः (व. से. । नेत्र रोगा.).
श्रीखण्डयष्टीमधुशालिपी
पाठापटोलेन्द्रयवा बृहत्यौ । श्यामामूलं कषायं वा मधुना व्रणशुक्रिणाम् । काली निसोतके क्वाथमें शहद मिला कर .
मूर्वागुडूची कटुका कषायः पीनेसे नेत्रोंका सत्रण शुक्र नष्ट होता है। "
क्षयोत्थकासे च सपिप्पलीकः ॥ (७२६६) श्रमहरो दशको महाकषायः
. चन्दन, मुलैठी, शालपर्णी, पाठा, पटोल, . (च. सं. । सू. अ. ४)
| इन्द्रजौ, छोटी और बड़ी कटेलो, मूर्वा, गिलोय
और कुटकी समान भाग ले कर काथ बनावें। केक्षु यवयष्टिका मत दशेमानि श्रमहराणि । इसमें पीपलका चूर्ण मिला कर सेवन करनेसे भवन्ति ।
| क्षयकी खांसी नष्ट होती है ।
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