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कषायमकरणम् ]
इसके सेवनसे १८ प्रकारके कुष्ठ शीघ्रही नष्ट हो जाते हैं ।
पचमी भागः
(७२५३) शूलप्रशमनो दशको
महाकषायः
( च. सं. । सू. अ. ४ ) पिप्पलीपिप्पलीमूल चम्पचित्रकशृङ्गवेरमरिचाजमोदा जगन्धाजाजीगण्डीराणीति द मानि शूलप्रशमनानि भवन्ति ।
पीपल, पीपलामूल, चब, चीता, सोंठ, काली मिर्च, अजमोदा, बन तुलसी, जोरा और सेहुंड ( थूहर ) ये दश ओषधियां शूलनाशक कषाय द्रव्योंमें श्रेष्ठ हैं ।
नोट ---' गण्डीर' का अर्थ कई टीकाकारांने शमठशाक भी किया है ।
(७२५४) शृङ्गवेरक्वाथः
(बृ.नि. र. | संग्रहण्य. ) कफजे शृङ्गवेरस्य क्वाथो नित्योपयौगिकः ।
कफज ग्रहणीमें सोंठका क्वाथ नित्य प्रति सेवन करना अत्युपयोगी है ।
(७२५५) शृङ्गवेररसयोगः
( वृ. नि. र. । श्वासा. ; बृ. मा. । कासा. ) स्वरसं शृङ्गवेरस्य माक्षिकेण समन्वितम् । पायाका प्रतिश्यायकफापहम् ॥
श्वास,
अदरक के रसमें शहद मिला कर चाटने से खांसी और प्रतिश्याय तथा कफका नाश
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(७२५६) शृङ्गवेरादिकाथः
(ट. मा. 1 अम्लपित्ता. ; वृ. नि. र. । ज्वरा.) कफपित्तवमीकण्ड्ज्वरविस्फोटदाहहा । पाचनो दीपनः क्वाथः शृङ्गवेरपटोलयोः ॥
अदरक (या सेठ) और पटोलका क्वाथ कफ, पित्त, वमन, कण्डू, ज्वर, विस्फोटक और दाहको नष्ट करनेवाला तथा दीपन पाचन है ।
(७२५७) शृङ्गयादिकाथः (१) ( यो. र. ; वृ. नि. र. । ज्वरा . ) शृङ्गीषन्वयवास पुष्करGeraniaठीसिंहिका । काथः पानविधानतः कफहोऽभिन्यासविध्वंसकः ॥
काकड़ासिंगी, जवासा, पोखरमूल, भरंगी, कचूर और कटेली समान भाग ले कर क्वाथ बनावें |
यह क्वाथ कफ और अभिन्यास सन्निपात नाशक है।
(७२५८) शृङ्गयादिकाथः (२) ( यो. र० ; वृ. नि. र. । ज्वरा . ) शृङ्गो वत्सकचेतकी
घनसटी भूनिम्बभार्गी निशाः तिक्ता पुष्कर चित्रकैः समरिचैर्व्याघ्रीवृषामिश्रितैः । धात्री दारुविभीतकैश्च
चविकाविश्वाकणाकट्फलैः पीतः कृन्तति कण्ठकुब्जमचिरात्कोष्णः कषायस्त्विह ।
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