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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org कषायमकरणम् ] इसके सेवनसे १८ प्रकारके कुष्ठ शीघ्रही नष्ट हो जाते हैं । पचमी भागः (७२५३) शूलप्रशमनो दशको महाकषायः ( च. सं. । सू. अ. ४ ) पिप्पलीपिप्पलीमूल चम्पचित्रकशृङ्गवेरमरिचाजमोदा जगन्धाजाजीगण्डीराणीति द मानि शूलप्रशमनानि भवन्ति । पीपल, पीपलामूल, चब, चीता, सोंठ, काली मिर्च, अजमोदा, बन तुलसी, जोरा और सेहुंड ( थूहर ) ये दश ओषधियां शूलनाशक कषाय द्रव्योंमें श्रेष्ठ हैं । नोट ---' गण्डीर' का अर्थ कई टीकाकारांने शमठशाक भी किया है । (७२५४) शृङ्गवेरक्वाथः (बृ.नि. र. | संग्रहण्य. ) कफजे शृङ्गवेरस्य क्वाथो नित्योपयौगिकः । कफज ग्रहणीमें सोंठका क्वाथ नित्य प्रति सेवन करना अत्युपयोगी है । (७२५५) शृङ्गवेररसयोगः ( वृ. नि. र. । श्वासा. ; बृ. मा. । कासा. ) स्वरसं शृङ्गवेरस्य माक्षिकेण समन्वितम् । पायाका प्रतिश्यायकफापहम् ॥ श्वास, अदरक के रसमें शहद मिला कर चाटने से खांसी और प्रतिश्याय तथा कफका नाश 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७२५६) शृङ्गवेरादिकाथः (ट. मा. 1 अम्लपित्ता. ; वृ. नि. र. । ज्वरा.) कफपित्तवमीकण्ड्ज्वरविस्फोटदाहहा । पाचनो दीपनः क्वाथः शृङ्गवेरपटोलयोः ॥ अदरक (या सेठ) और पटोलका क्वाथ कफ, पित्त, वमन, कण्डू, ज्वर, विस्फोटक और दाहको नष्ट करनेवाला तथा दीपन पाचन है । (७२५७) शृङ्गयादिकाथः (१) ( यो. र. ; वृ. नि. र. । ज्वरा . ) शृङ्गीषन्वयवास पुष्करGeraniaठीसिंहिका । काथः पानविधानतः कफहोऽभिन्यासविध्वंसकः ॥ काकड़ासिंगी, जवासा, पोखरमूल, भरंगी, कचूर और कटेली समान भाग ले कर क्वाथ बनावें | यह क्वाथ कफ और अभिन्यास सन्निपात नाशक है। (७२५८) शृङ्गयादिकाथः (२) ( यो. र० ; वृ. नि. र. । ज्वरा . ) शृङ्गो वत्सकचेतकी घनसटी भूनिम्बभार्गी निशाः तिक्ता पुष्कर चित्रकैः समरिचैर्व्याघ्रीवृषामिश्रितैः । धात्री दारुविभीतकैश्च चविकाविश्वाकणाकट्फलैः पीतः कृन्तति कण्ठकुब्जमचिरात्कोष्णः कषायस्त्विह । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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