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1- भैषज्य रत्नाकरः
भारत
(७२४९) शुण्ठयादिक्वाथः (११)
( वैद्यामृत ) शुष्ठीदारुचठीरजोवृहति कातिक्ताकिराताम्बुदा नन्ताभिर्जनितः कषायकवरः कृष्णामधुभ्यां
युतः । निःशेषं त्रितयोद्भवज्वरहरो जीर्णज्वरस्यान्तकृत् कासारिर्विषमापडोपि गदितः शुण्ठयादिकः
सूरिभिः ॥ सोंठ, देवदारु, कचूर, पित्तपापड़ा, कटेली, कुटकी, चिरायता, नागरमोथा और अनन्तमूल समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
इसमें शहद और पीपलका चूर्ण मिलाकर सेवन करनेसे तृतीयक ज्वर, जीर्णज्वर, कास और विषमज्वरका नाश होता है ।
(७२५० ) शुण्ठयादिक्वाथः (१२)
(हा. सं. । स्था. ३ अ. ३ ) शुण्ठीविषाजलधरामृतावत्सकानां तिक्ताइयं च कृतशीतलकः कषायः । पाने विधेय मधुना प्रतिसाधितस्तु ज्वरातिसारशमनाय सदा प्रदेयः ||
सोंठ, अतीस, नागरमोथा, गिलोय, कुडेकी छाल और कुटकी समान भाग ले कर शीतकषाय बनावें । इसमें शहद मिला कर पिलानेसे ज्वरातिसार नष्ट होता है ।
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(७२५१) शुण्ठयादिपाचनम्
( हा. सं. 1 स्था. ३ अ. ३ ) शुण्ठीबालकस्ताविल्वं पाठा विषा च धान्यानि । पाचनमरुचौ छर्दिज्वरातिसारं विनाशयति ॥
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[ शकारादि
सोंठ, सुगन्धवाला, नागरमोथा, बेलगिरी, पाठा, अतीस और धनिया समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
यह क्वाथ पाचन तथा अरुचि, छर्दि और ज्वरातिसार नाशक है ।
(७२५२) शुण्ठयादिमहाकषायः (बृ. यो. त । त. १२० ) शुण्ठीनिम्बकिराततिक्तककणाः पाठा हरिद्राद्वयं त्रायती त्रिफला मृताब्दकटुका वासा वचा वाकुची । मनिष्ठाऽतिविषा दुरालभामहानिम्बानिपहू
ग्रन्थिका
व्याधिना गजचिटा सकुटजा भार्गी समुस्ता यवाः ।।
मूर्वा चैत्र पटोलपत्रसहिता रक्तं तथा चन्दनं श्यामा सारिवा कृमिहरा गायत्रिकासंयुता । गोमूत्रेण महाकषायमरुणोद्भूते पिवेद्यः पुमान् तस्याष्टादश यान्ति नाशमचिरात्कुष्ठानि दुष्टान्यपि ॥
सेठ, नीमकी छाल, चिरायता, पीपल, पाठा, हल्दी, दारूहल्दी, त्रायमाणा, हरें, बहेड़ा, आमला, गिलोय, नागरमोथा, कुटकी, बासा (अडूसा) बच, बावची, मजीठ, अतीस, धमासा, बकायनकी छाल, चीता, अम्बाहल्दी ( आमहरिद्रा ), अमलतास, इन्द्रायण, कुड़ेकी छाल, भरंगी, नागरमोथा, जौ, मूर्वा, पटोलपत्र, लाल चन्दन, काली निसोत, पित्त / पापड़ा, सारिवा, बायबिडंग और खैरसार समान भाग ले कर गोमूत्र में पका कर क्वाथ बनावें ।
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