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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कषायमकरणम् ] पञ्चमो भागः (७२४३) शुण्ठयादिक्वाथः (५) । (७२४६) शुण्ठयादिक्वाथः (८) (वै. जी. । विलास २) (ग. नि. ; व. से. ; वृ. मा. । ग्रहण्य. ; यो. र.) शुण्ठीछिन्नरुहाविषाजलधरैस्तुल्यैः कषायः कृतो शुण्ठी समुस्तातिविषां गुडूची मन्दानौ ग्रहणीगदेपि सततं सामानुपन्धे हितः। पिबेज्जलेन क्यथितां समांशाम् । मन्दानलत्वे सततामतायासांठ, गिलोय, अतीस और नागरमोथा समान मामानुवन्धे ग्रहणीगदे च ॥ भाग ले कर क्वाथ बनावें। सेठ, नागरमोथा, अतीस और गिलोय समान ___ यह क्वाथ मन्दाग्नि, ग्रहणीदोष और आमको | भाग ले कर क्वाथ बनावें । नष्ट करता है। इसके सेवनसे अग्निमांद्य, पेटमें सदा आम सञ्चित होते रहना और आमयुक्त संग्रहणीका (७२४४) शुण्ठयादिक्वाथः (६) । नाश होता है। ( वृ. नि. र. । स्वासा.) ___ (७२४७) शुण्ठयादिक्वाथः (९ अयि प्राणप्रिये जातिफललोहितलोचने । (ग. नि. । ज्वरा. १) शुण्ठीभाङ्गीकृतः क्वाथः श्वासत्रासाय पाययेत् ॥ शुण्ठीमुस्तादुरालभागुडूचीक्वथितं जलम् । ___ सेट, और भरंगीका क्वाथ स्वासको नष्ट पिबेदष्टावशेष यत्तद्धि वातज्वरं हरेत् ॥ करता है। सेठ, नागरमोथा, धमासा और गिलोय स(७२४५) शुण्ठयादिक्वाथः (७) । मान भाग ले कर आठगुने पानीमें पकावें और आठवां भाग पानी शेष रहने पर छान लें । ( वृ. मा. । शोथा. ; यो. र. । शोधा. ; । इसके सेवनसे वातज ज्वर नष्ट होता है । वृ. नि. र.) (७२४८) शुण्ठयादिक्वाथः (१०) शुण्ठीपुनर्नवैरण्डपञ्चमूलभृतं जलम् । (व. से. । ज्वरा.) वातिके श्वययौ शस्तं पानाहारपरिग्रहे ॥ शुण्ठीवराब्दोशीरैश्च पिवेत्तोयं सुसाधितम् । सोंठ, पुनर्नवा (बिसखपरा), अरण्डकी जड़, दाहशीतज्वरहरं पाचनं भिषजां मतम् ॥ बेलकी जड़, श्योनाक (अरलु) की जड़, खम्भारीकी । (अरल्ल) का जड़, खम्भारीकी सांठ, त्रिफला, नागरमोथा और खस समान जड़, पाढलकी जड़ और अरणीमूल समान भाग भाग ले कर क्वाथ बनावें । ले कर कोथ बनावें । ___ यह क्वाथ दाह और शीतञ्चर नाशक तथा यह क्वाथ वातज शोथको नष्ट करता है। पाचक है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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