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कषायमकरणम् ]
पञ्चमो भागः
(७२४३) शुण्ठयादिक्वाथः (५) । (७२४६) शुण्ठयादिक्वाथः (८)
(वै. जी. । विलास २) (ग. नि. ; व. से. ; वृ. मा. । ग्रहण्य. ; यो. र.) शुण्ठीछिन्नरुहाविषाजलधरैस्तुल्यैः कषायः कृतो शुण्ठी समुस्तातिविषां गुडूची मन्दानौ ग्रहणीगदेपि सततं सामानुपन्धे हितः। पिबेज्जलेन क्यथितां समांशाम् ।
मन्दानलत्वे सततामतायासांठ, गिलोय, अतीस और नागरमोथा समान
मामानुवन्धे ग्रहणीगदे च ॥ भाग ले कर क्वाथ बनावें।
सेठ, नागरमोथा, अतीस और गिलोय समान ___ यह क्वाथ मन्दाग्नि, ग्रहणीदोष और आमको | भाग ले कर क्वाथ बनावें । नष्ट करता है।
इसके सेवनसे अग्निमांद्य, पेटमें सदा आम
सञ्चित होते रहना और आमयुक्त संग्रहणीका (७२४४) शुण्ठयादिक्वाथः (६) ।
नाश होता है। ( वृ. नि. र. । स्वासा.)
___ (७२४७) शुण्ठयादिक्वाथः (९ अयि प्राणप्रिये जातिफललोहितलोचने ।
(ग. नि. । ज्वरा. १) शुण्ठीभाङ्गीकृतः क्वाथः श्वासत्रासाय पाययेत् ॥ शुण्ठीमुस्तादुरालभागुडूचीक्वथितं जलम् । ___ सेट, और भरंगीका क्वाथ स्वासको नष्ट पिबेदष्टावशेष यत्तद्धि वातज्वरं हरेत् ॥ करता है।
सेठ, नागरमोथा, धमासा और गिलोय स(७२४५) शुण्ठयादिक्वाथः (७) ।
मान भाग ले कर आठगुने पानीमें पकावें और
आठवां भाग पानी शेष रहने पर छान लें । ( वृ. मा. । शोथा. ; यो. र. । शोधा. ;
। इसके सेवनसे वातज ज्वर नष्ट होता है । वृ. नि. र.)
(७२४८) शुण्ठयादिक्वाथः (१०) शुण्ठीपुनर्नवैरण्डपञ्चमूलभृतं जलम् ।
(व. से. । ज्वरा.) वातिके श्वययौ शस्तं पानाहारपरिग्रहे ॥
शुण्ठीवराब्दोशीरैश्च पिवेत्तोयं सुसाधितम् । सोंठ, पुनर्नवा (बिसखपरा), अरण्डकी जड़, दाहशीतज्वरहरं पाचनं भिषजां मतम् ॥ बेलकी जड़, श्योनाक (अरलु) की जड़, खम्भारीकी ।
(अरल्ल) का जड़, खम्भारीकी सांठ, त्रिफला, नागरमोथा और खस समान जड़, पाढलकी जड़ और अरणीमूल समान भाग भाग ले कर क्वाथ बनावें । ले कर कोथ बनावें ।
___ यह क्वाथ दाह और शीतञ्चर नाशक तथा यह क्वाथ वातज शोथको नष्ट करता है। पाचक है ।
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