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लेपप्रकरणम् ]
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पञ्चमो भागः
(८०६०) सूर्यावर्तादिलेप:
(ग. नि. । ग्रन्ध्य. १ ; वृ. नि. र. । गलगण्डा ) सूर्यावर्तरसोनाभ्यां गलगण्डोपनाहनम् । स्फोटास्राः शमयति गलगण्डं न संशयः ॥
हुलहुल के पत्ते और ल्हसन समान भाग ले कर दोनोंको अत्यन्त बारीक पीस कर गलगण्ड पर लेप करें | इससे छाला पड़ कर वह फूट जायगा और मवाद निकल कर गलगण्ड नष्ट हो जायगा । (८०६१) सैन्धवादिलेप: (१)
(८०६३) सैन्धवादिलेप: (३) ( वृ यो त । त. १२० ) सैन्धवं चक्रमर्द च सर्षपं पिप्पलीं तथा । सेचयेदारनालेन पामाकण्डूविनाशनम् ।।
सेंधा नमक, पंवाड़के बीज, सरसो और पीपल इनका चूर्ण समान भाग ले कर सबको कांजी के साथ पीसकर लेप करने से पामा और कण्डू ( खुजली ) का नाश होता है । (८०६४) सैन्धवादिलेप: (४) ( व. से. । नेत्ररोगा. ) सैन्धवदारुहरिद्रागौरकपथ्यारसाञ्जनैः पिटैः । दत्तो बहिः प्रलेपो भवत्यशेषाक्षिरोगहरः ॥ सेंधा नमक, दारूहल्दी, गेरू, हर और रसौत मिक्षुद्भूतं केशरं तार्क्ष्यशैलम् समान भाग ले कर सबको पानी के साथ बारीक पिष्टो लेपोsयङ्कपित्थाद्ररसे पीसकर आंखों के बाहर लेप करनेसे समस्त नेत्ररोग नष्ट होते हैं ।
( सु. सं. । चि. अ. ९ ) सिन्धुद्भूतं चक्रमर्दस्य बीज -
दस्तूर्ण नाशयत्येष योगः ॥
(८०६५) सैन्धवादिलेप: (५) ( यो त । त. ६२ )
सेंधा नमक, पंवाड़ के बीज, खांड, केसर और रसौत समान भाग ले कर बारीक चूर्ण बनावें । इसे कैथके रसमें पीस कर लेप करने से दाद शीघ्र ष्ट हो जाता है ।
(८०६२) सैन्धवादिलेप: (२)
( वृ. नि. र. । अर्श.; षृ. यो. त. । तं. ६९ ) सिन्धूत्यदेवदालयाश्च बीजं काञ्जिकपेषितम् गुदाङ्कुरान्मलेपेन पाटयेत्पर्वतानपि ॥
Faraar और fire डोढेके बीज समान भाग ले कर दोनोंको कालीके साथ बारीक पीस कर लेप करने से अर्शके मस्से नष्ट हो जाते हैं ।
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सैन्धवं मदनं रालं मधु सर्पिः पुरो गुडम् । गैरिकं स्फुटितौ पादौ लिप्तौ पङ्कजसन्निभौ ॥
सेंधा नमक, मोम, राल, शहद, घी, गूगल, गुड़ और गेरु समान भाग ले कर प्रथम घी में गूगल मिलाकर गरम करें जब ये दोनों मिल जाएं तो उसमें मोम और शहद मिलालें तदनन्तर गुड़ और अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह खरल करें ।
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इसका लेप करनेसे पैरों की बिवाई नष्ट होकर पैर कमल सदृश कोमल हो जाते हैं ।