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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [सकारादि "" " x x (८०६६) सोमवल्कादिलेपः उसमें १-१ भाग शहद और अगस्ति के पत्तोंका (च. द. ; वृ. मा. । विषा.) रस मिला कर लिङ्ग पर लेप करें और एक पहर पश्चात् धो कर स्त्रीसमागम करें । यह इतना सोमवल्कोऽश्वकर्णश्च गोजिता हंसपायपि । स्तम्भक है कि मनुष्य एक समयमें सौ स्त्रियों से रजन्यौ गैरिकं लेपो नखदन्तविषापहः ॥ सुख पूर्वक रमण कर सकता है । श्वेत खदिर, शालवृक्षका सार, गोजिह्वा (८०६९) स्थूलीकरणलेपा। (गोजिया घास), हंसपादी, हल्दी, दारुहल्दी और (धन्व. । वाजीकरणा. गेरु समान भाग ले कर पानीके साथ पीस लें। (१) इसका लेप करनेसे नख और दांतोंका विष सकुष्ठमातङ्गबलावलानां नष्ट होता है। वचाश्वगन्धा गजपिप्पलीनाम् । (८०६७) सौभाञ्जनादिलेपः तुरङ्गशत्रोनवनीतयोगा लेपेन लिङ्गं मुशलत्वमेति ॥ (यो. त. । त. ५७ ; वृ. मा. | गलगण्डा.) - सौभाअनं देवदारु कानिकेन प्रयोजितम् । कोष्णप्रलेपतो हन्यादपची दुस्तरामपि ॥ बृहतासितसिद्धार्थकवचातुरगगन्धकासहितैः । संहजनेकी छाल और देवदारुके समान भाग एभिः प्रलेपितं स्यात्पुरुषवराङ्गं हयस्येव ।। मिलित बारीक चूर्णको कांजीके साथ पीसकर गरम । करके लेप करने से दुःसाध्य अपची ( गण्डमाला घृतमधुयुक्तं तैलं बृहतीफलमात्मगुप्ता च । भंद )का भी नाश होता है। । एभिर्वराङ्गऋद्धिः सप्तदिनं ताम्रभाण्डपर्युषितैः ॥ (८०६८) स्तम्भकलेपः ( यो. त. । त. ८०) | अश्वगन्धापामार्गबृहतीसारिवातिलान् । कपूरं टङ्कणं मूतं तुल्यं मुनिरसं मधु। कुटजस्य च बीजानि तथा वै राजसर्षपान ।। सम्मर्थ लेपयेल्लिङ्गं स्थित्वा यामं तथैव च। समभागानि कृत्वा तान् क्षीरेणाज्येन पेषयेत । ततः प्रक्षाल्य रमयेद्वनितानां शतं सुखम। तं समुर्तितं लिङ्गं तेनाति स्थूलतां व्रजेत् ॥ वीर्यस्तम्भकरं पुंसां सम्यङ्नागार्जुनोदितम् ॥ ___ कपूर, सुहागा और शुद्ध पारा समान भाग साज्यकुष्ठसमायुक्तं ,बृहतीफलमिश्रितम् । ले कर तीनोंको अच्छी तरह खरल करें और फिर शतावरीमूलयुतमश्वगन्धासमन्वितम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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