SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि (८०५५) सुवर्णपुष्प्यादिलेपः बराबर बराबर ले कर सबको एकत्र मिलाकर स्त्रीके ( शा. सं. । खं. ३ अ. ११) दूधमें मिलाकर घोट लें। सन्निपातमें इसका लेप करनेसे समस्त उपद्रव सुवर्णपुष्पी कासीसं विडङ्गानि मनःशिला। नष्ट हो जाते हैं। रोचना सैन्धवं चैव लेपनाच्छित्रनाशनम् ॥ (८०५७) सूतादिलेपः अमलतासके पत्ते, कसीस, बायबिडंग, मन (यो. र. । कुष्ठा.) सिल, गोरोचन और सेंधानमक समान भाग ले कर | सतगन्धकयोः पिष्टा कज्जलिकां विधाय च । बारीक पीस लें। म्रक्षणेन विमर्थाथ करित्वग्लेपने हितम् ॥ यह लेप लगानेसे स्वित्र कुष्ठ नष्ट होता है। (समान भाग ) पारे और गन्धककी अत्य (८०५६) सुवर्णादिलेपः | महीन कज्जलीको मक्खन में मिलाकर लेप कर | करित्वक् (गजचर्म) रोग नष्ट होता है। (र. चं. ; वृ. नि. र. । ज्वरा.) (८०५८) सूरणादिलेपः (१) सुवर्णमुक्तारजतप्रवालं (बृ. नि. र. । प्रहण्य.) कस्तूरिकाकुङ्कमरोचनं च । सूरणं रजनी वहिटणं गुडमिश्रितम् । वराट-रुद्राक्ष-मधूक-बिल्वं पिष्ट्वारनालकैलेंपो हन्त्य सि महान्त्यपि ।। कुष्ठं च खजूरपुनर्नवे च ॥ ___जिमीकन्द, हल्दी, चीतामूल, सुहागा औ द्राक्षा कणा नागरपुत्रजीवी गुड़ समान भाग ले कर कांजीके साथ अत्यन्त सारङ्गशृङ्गं कतकस्य बीजम् । बारीक पीस कर लेप करनेसे प्रवृद्ध अर्शके मस्सेभी एरण्डमूलं शरशीर्षकं च नष्ट हो जाते हैं। मयूरिका श्वेतपुनर्नवा च ॥ स्तन्येन पिष्ट्वा कुरु सन्निपाते (८०५९) सूरणादिलेपः (२) लेपः सदा सर्वगदानिहन्ति ॥ (वै. म. र. । पटल १६) सेना, मोती, चांदी, प्रवाल, कस्तूरी, केसर, परिणतसूरणकन्दं सनागरं तोयसम्पिटम् । गोरोचन, कौड़ी, रुद्राक्ष, महुवेके फूल, बेलकी मेदोग्रन्थिहरार्थ लिम्पेद्बहुशश्च सप्ताहम् ।। छाल, कूठ, खजूर, पुनर्नवा, द्राक्षा (मुनक्का), पीपल, पक जिमिकन्द और सांठ समान भाग ले सोंठ, पुत्रजीव, हरिणका सींग, निर्मलीके बीज, | कर दोनोंको पानीके साथ बारीक पीस कर बार अरण्डमूल, शर (सरकण्डेकी जड़), अगर, पाठा | बार लेप करनेसे १ सप्ताहमें मेदकी गांठ नष्ट हो और सफेद पुनर्नवा; इनका अत्यन्त बारीक चूर्ण | जाती है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy