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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतप्रकरणम् पञ्चमो भागः शारिवे रजनी पाठाभृादारुसुवर्चलाः। इस प्रकार इसे सेवन करानेसे बुद्धिमान, मनिष्ठा त्रिफला श्यामा वृषपुष्पं सगैरिकम् ॥ रोगरहित और स्पष्ट उच्चारण करने वाला पुत्र धीमान् पक्त्त्वा घृतप्रस्थं सम्यङ्मन्त्राभिम- । उत्पन्न होता है। त्रितम् ।। यह घृत योनिदोषों और वीर्यदोषोंको नष्ट द्विमासगर्भिणी नारी षण्मासानुपयोजयेत् ॥ करनेके लिये एक उत्तम औषध है। इसके सेवन सर्वज्ञं जनयेत्पुत्रं सर्वामयविवर्जितम् । | से बन्ध्या स्त्रीको भी शूर और विद्वान पुत्र प्राप्त अस्य प्रयोगात् कुक्षिस्थः स्फुटवाग्व्याहरत्यपि ।। | होता है। योनिदुष्टाश्च या नार्यों रेतोदुष्टाश्च ये नराः। यह घृत जड़ता, गद्गद् शब्द ( हकलाना) स्त्रीणां पुंसां दोषहरं घृतमेतदनुत्तमम् ॥ और मूकता ( गूंगेपन ) को नष्ट करता है। वन्ध्यापि लभते पुत्रं शूरं पण्डितमानिनम् । । इसे केवल सात दिन ( थोड़े दिनों ही) जगद्गमूकत्वं पानादेवापकर्षति ॥ सेवन करनेसे मनुष्य श्रुतिधर हो जाता है । सप्तरात्रप्रयोगेण नरः श्रुतिधरो भवेत् । जिस घरमें यह घृत रहता है वह घर विनों नामिदहति तद्वेश्म न वज्रमुपहन्ति च ।। | से सुरक्षित रहता है और उसमें बालकोंकी मृत्यु न तत्र म्रियते बालो यत्रास्ते सोमसंज्ञितम् ॥ नहीं होती। ___ कल्क-सफेद सरसों, बच, ब्राह्मी, शंखा- (मात्रा-६ माशे से १ तोले तक) होली (शंखपुष्पी), पुनर्नवा (साठीकी जड़) (७९६४) सोमघृतम् (२) क्षीरकाकोली, कूठ, मुलैठी, कुटकी, त्रिफला (मुनक्का, खम्भारीके फल, फालसा), दो प्रकारकी शारिवा, | ( वृ. मा. । स्त्रीरोगा.) हल्दी, पाठा, भंगरा, देवदारु, हुलहुल, मजीठ. सिद्धार्थकं वां ब्राह्मीं शङ्खपुष्पी विषाणिकाम् । हरं, बहेड़ा, आमला, फूलप्रियंगु, अडूसे ( बासे) | पयस्यां मधुकं कुष्ठं तथा कटुकरोहिणीम् ॥ के फूल और गेरु ; इनका चूर्ण समान भाग मिलित सारिवां त्रिफलां चैव चोरकं सुमनो लताम् । २० तोले। | वृषपुष्पं समष्ठिं देवदारु महौषधम् ॥ २ सेर धीमें यह कल्क और ८ सेर पानी पिप्पल्यो भृगराजं च निशां श्यामां सुवचेलाम्। मिलाकर पकावें । जब पानी जल जाए तो घीको | दशमूलमपामार्गमश्वगन्धां शतावरीम् ॥ छान लें एवं उसे गायत्री मन्त्रसे अभिमन्त्रित करके | जलद्रोणे पचेदेतान्भागैर्द्विपलिकैः पृथक् । सुरक्षित रक्खें । | तत्कषायं परिस्राव्य घृतस्यार्धाढकं पचेत् ॥ ___ इसे गर्भके दो महीने पूरे होनेके पश्चात्से युक्त्या प्रदापयेदेतद्रायच्या चाभिमन्त्रितम् । गर्भिणी स्त्रीको सेवन कराना चाहिये और ६ मास | द्विमासगर्भिणी नारी ह्यष्टमासान्प्रयोजयेत् ॥ निरन्तर खिलाना चाहिये। सर्वज्ञं जनयेत्पुत्रं सर्वामयविवर्जितम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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