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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि खजूरी भीरु मृद्वीका गोक्षुरुश्च सशर्करः। दारुणछर्दि, विसर्प, विष, बणजनित शोष (उरःक्षत एषां चतुःपली मात्रा दुग्ध प्रस्थं विनिक्षिपेत् ॥ जनित क्षय ), मकड़ीका विष, भूत और पिशाचप्रस्थाधे नवनीतं च घृतप्रस्थार्धकं क्षिपेत् । वाधा, पामा और कुष्ठका नाश होता है। पचेन्मृद्वग्निना तावत्सिद्धं यावत्पदर्यते ॥ यह घृत मन्दाग्नि और विषमाग्निको सम कर परिशृतं शुभे भाण्डे शीतस्थाने तु धारयेत् । देता है ।। सर्बदा भोजनाभ्यंगे नस्ये बस्ती प्रदापयेत् ॥ (इस घृतमें २ सेर घी में ३॥ सेर से अधिक हन्त्यपस्मारक घोरमुन्मादं च नियच्छति । कल्क है, जो साधारण नियमसे बहुत अधिक है अतः तमकं भ्रमकं शोषं सदाघं च सपीनसम् ॥ पाकके समय ११ मनके लगभग पानी भी मिलोना क्षयं च राजयक्ष्माणं छर्दि जयति दारुणाम् । चाहिये नहीं तो पाक ठीक न होगा।) हन्ति विसर्प विषं घोरं व्रणशोषहरं परम् ॥ (७९६२) सैन्धवघृतम् लूताभूतपिशाचानां पामाकुष्ठविनाशनम् ।। त्रासनं सर्वदोषाणां प्राशनं वै घृतस्य च ॥ ( यो. र. । अपस्मारा) मन्दाग्निविषमाग्नीनां साम्यं प्रकुरुते भृशम् । घृतं सैन्धवहिङ्गभ्यां कणाभिस्तच्चतुर्गुणैः ।। हन्ति रोगं तमस्तोमं शीघं सूर्योदयो यथा ॥ मूत्रः सिद्धमपस्मारहृद्ग्रहग्रापनाशनम् ॥ ___ कल्क-रास्ना, पीपलामूल, दशमूल, शतावर, कल्क सेंधा नमक, हींग और पीपल सनकी जड़, निसोत और अरण्डमूल, १०-१० | समान भाग मिलित १० तोले लेकर एकत्र तोले; विदारीकन्द, मुलैठी, मेदा, महामेदा, पुनर्नवा, पीस लें। काकोली, क्षीरकाकोली और हर्र १५-१५ तोले; १ सेर धीमें यह कल्क और ४ सेर गोमूत्र खजूर, छोटी शतावर, मुनक्का, गोखरु और खांड मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब मूत्र जल जाए २०-२० तोले । लेकर सबको एकत्र पीस लें। तो घीको छान लें । १ सेर नवनीत ( मक्खन ) और १ सेर घी यह घृत अपस्मार और ग्रहविकारोंको नष्ट को एकत्र मिलाकर उसमें उपरोक्त कल्क और २ करता। सेर दूध मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी (मात्रा-१ तोला।) और दूध जल जाए तो घीको छान लें। इसे शीतल स्थानमें रखना चाहिये । (७९६३) सोमघृतम् (१) इसे भोजनमें खिलाना तथा अभ्यंग, नस्य । (भै. र. । स्त्रीरोगा ; व. से. । बालरोगा. ; और बस्तिद्वारा प्रयुक्त करना चाहिये । वृ. यो. त. । त. १४४ ; च. द. । स्त्रीरोगा.) इसके सेवनसे अपस्मार, घोर उन्माद, तमक- सिद्धार्थकं वचा ब्रह्मो शङ्खपुष्पी पुनर्नवा । श्वास, भ्रम, शोष, दाह, पीनस, क्षय, राजयक्ष्मा, | पयस्यामययष्टयाहं कटुका च फलत्रयम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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