________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
घृतप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः
२४९ इसे निरन्तर दीर्घकाल तक सेवन करनेसे | तोले लेकर सबको एकत्र कूटकर ८ सेर पानीमें कान्ति, लावण्य और पुष्टि की वृद्धि होती है। पकावें और २ सेर रहने पर छान लें। ___ यह घृत वर्म, विद्रधि, गुल्म, अर्श, योनि कल्क--जीवन्ती, कुटकी, पीपल, पीपलामूल,
और लिंगकी वातज पीड़ा, शोथ, उदररोग, वातरक्त, | काली मिर्च, देवदारु, इन्द्रजौ, सेंभलके फूल, क्षीरप्लोहा और मलबन्धको नष्ट करता है।
काकोली, सफेदचन्दन, रसौत, कायफल, चीतामूल, (७९६०) सुनिषण्णकचाङ्गेरीतम् । नागरमोथा, फूलप्रियंगु, अतीस, शालपर्णी, कमल( भै. र. ; च. द. । अर्थी.)
केसर, नीलोत्पलकी केसर, मजीठ, कटेली, सेठि'
मोचरस और पाठा ११-१। तोला लेकर सबको अवाक्पुष्पी बला दाों पृश्निपर्णी त्रिकण्टकम् ।।
एकत्र पोस लें। न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्थशुङ्गाश्च द्विपलोन्मिताः ।।
२ सेर घी में उपरोक्त क्वाथ, कल्क तथा कषाय एष पेष्यास्तु जीवन्ती कटुरोहिणी ।
४-४ सेर चांगेरी ( चौपतिया) और सुनिषण्णक पिप्पली पिप्पलीमूलं मरिचं देवदारु च ॥
( अम्ललोनी ) का रस मिलाकर पकायें। जब पानी कलिङ्गं शाल्मलीपुष्पं वीरा चन्दनमञ्जनम् । ।
जल जाय तो घीको छान लें। कट्फलं चित्रकं मुस्तं प्रियङ्ग्वसिविषे स्थिरा॥
यह घृत अर्श, त्रिदोषज अतिसार, रक्तस्राव, पनोत्पलानां किञ्जल्फः समङ्गा सनिदिग्धिका ।
प्रवाहिका, गुदभ्रंश, पिच्छल दस्त आना, शोथ, विश्वं मोचरसं पाठाभागाः स्युः कार्षिका:पृथक।।
शूल, अर्श, अन्नग्रह, मूढवात, अग्निमांद्य और चतुः प्रस्थशृतं प्रस्थं कषायमवतारयेत् ।
भरुचि को नष्ट करता तथा बल वर्ण और अग्निकी त्रिंशत्पलानि तु प्रस्थो विज्ञेयो द्विपलाधिकः ॥
" वृद्धि करता है। मुनिषण्णकचाङ्गेाः प्रस्थी द्वौ स्वरसस्य च ।
इसे विविध प्रकारके अन्नपाने के साथ या सवरेतैर्यथोदिष्टेघृतपस्थं विपाचयेत् ॥
अकेला ही खिलाना चाहिये । । एतदर्शःस्वनीसारे त्रिदोषे रुधिरसुती ।
(मात्रा-१ तोला ।) प्रवाहणे गुदभ्रंशे पिच्छासु विविधासु च ॥ उत्थाने चापि बहुशः शोथशूलगुदामये ।
(७९६१) सूर्योदयघृतम् अन्नग्रहे मूढवाते मन्दानावरुचावपि ॥
(हा. सं. । स्था. ३ अ. २१) प्रयोज्यं विधिवत्सर्पिर्बलवर्णाग्निवर्धनम् । रास्नामागधिकामूलं दशमूलं शतावरी । विविधेष्वन्नपानेषु केवलं का निरत्ययम् ॥ शणत्रिवृत्तथैरण्डो भागान् द्विपलिकान् क्षिपेत् ।। ___ क्वाथ-सोया, खरैटी, दारुहल्दी, पृष्ठपर्णी, तथाविदारी मधुक मेदे द्वे सपुननेवा । गोखरु, बड़ (बरगद ) के अंकुर (कोंपल ), काकोल्यौ द्वे शिवा चैव भागा त्रिपलिकानि च ॥ गूलरकी कांपल, और पीपलकी कोंपल १०-१० १-सांठके स्थान पर बिल्व है ।
३२
For Private And Personal Use Only